कहै कवि ब्रह्म वारि हेरत हरिन फिरैं
बैहर बहति बड़े जोर सों जहकि है।
तरनि के तावन तवासी भई भूमि रही
दसहू दिसान में दवारि सी दहकि है।
२- पेट में पौढ़ि के पौढ़े मही पर
पालना पौढ़ि के वाल कहाये।
आई जबै तरुनाई तिया सँग
सेज पै पौढ़ि के रंग मचाये।
छीर समुद्र के पौढ़नहार को
ब्रह्म कबौंचित तें नहिं ध्याये।
पौढ़त पौढ़त पौढ़त ही सों
चिता पर पौढ़न के दिन आये।
नरहरि अकबरी दरबार के प्रसिद्ध कवि थे। वे जिला फ़तहपूर-असनी गाँव के निवासी थे। शायद जाति के बंदीजन थे, कहा जाता है कि इनके एक छप्पे पर रीझ कर अकबर ने अपने समय में गावकुशी़ बंद कर दी थी। वह छप्पे यह है: -
अरिहुं दन्त तृन धरैं ताहि मारत न सबल कोइ।
हम संतत तृन चरहिँ बचन उच्चरहिं दीन होइ।
अमृत पय नितस्रवहिं बच्छ महि थम्मन जावहिं।
हिन्दहिं मधुर न देहिं कटुक तुरकहिं न पियावहिं।
कह नरहरि कवि अकबर सुनो
बिनवत गऊ जोरे करन।
अपराध कौन मोहि मारियतु
मुयेहुं चाम सेवत चरन।