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रहा प्रथम अब ते दिन बीते।
समउ फिरे रिपु होइँ पिरीते।
जर तुम्हारि चह सवति उखारी।
रूँधहु करि उपाइ बर बारी।
तुम्हहिँ न सोच सोहाग बल,
निज बस जानहु राउ।
मन मलीन मुंहु मीठु नृप,
राउर सरल सुभाउ।
जौ असत्य कछु कहब बनाई।
तो विधि देइहि हमहिं सजाई।
रेख खँचाइ कहहुँ बल भाखी।
भामिनि भइहु दूध कै माखी।
काह करउँ सखि सूध सुभाऊ।
दाहिन बाम न जानउँ काऊ।
नैहर जनम भरब बरु जाई।
जिअत न करब सवति सेवकाई।

रामायण

२—मोकहँ झूठहिं दोष लगावहिं।
मइया इनहिं बान परगृह की नाना जुगुति बनावहिं।
इन्ह के लिये खेलियो छोर्यो तऊन उबरन पावहिं।
भाजन फोरि बोरि कर गोरस देन उरहनो आवहिं।
कबहुंकबाल रोवाइ पानि
गहि एहि मिस करि उठि धावहिं।