मतों का समन्वय जैसा इस महान् ग्रन्थ में मिलता है वैसा किसी अन्य ग्रन्थ में दृष्टिगत नहीं होता। शैवों और वैष्णवों का कलह सर्व-जन विदित है परन्तु गोस्वामीजी ने उसका जिस प्रकार निराकरण किया उसकी जितनी प्रशंसा की जाय थोड़ी है। समस्त वेद, शास्त्र और पुराणों के उच्च से उच्च भावों का निरूपण इस ग्रन्थ में पाया जाता है और अतीव प्राञ्जलता के साथ। काव्य और साहित्य का कोई उत्तम विषय ऐसा नहीं कि जिसका दर्शन इस ग्रन्थ में न होता हो। यह ग्रन्थ सरसता, मधुरता, और मनोभावों के चित्रण में जैसा अभूतपूर्व है वैसाही उपयोगिता में भी अपना उच्चस्थान रखता है। यही कारण है कि तीन सौ वर्ष से वह हिन्दूसमाज, विशेष कर उत्तरीय भारत का आदर्श ग्रन्थ है। जिस समय मुसल्मानों का अव्याहत प्रताप था शास्त्रों के मनन, चिन्तन का मार्ग धीरे धीरे बन्द हो रहा था, संस्कृत की शिक्षा दुर्लभतर हो रही थी और हिन्दू समाज के लिये सच्चा उपदेशक दुष्प्राप्य था। उस समय इस महान् ग्रन्थ का प्रकाश ही उस अन्धकार का नाश कर रहा था जो अज्ञात-रूप में हिन्दुओं के चारों ओर व्याप्त था। आज भी उत्तर भारत के गाँव गाँव में हिन्दू शास्त्र के प्रमाण-कोटि में रामायण की चौपाइयां गृहीत हैं। प्रायः अंग्रेज विद्वानों ने लिखा है कि योरोप में जो प्रतिष्ठा बाइबिल (Bible) को प्राप्त है भारतवर्ष में वह गौरव यदि किसी ग्रन्थ को मिला तो वह रामचरित मानस है। एक साधारण कुटी से लेकर राजमहलों तक में यदि किसी ग्रन्थ की पूजा होती है तो वह रामायण ही है। उसका श्रवण, मनन और गान सबसे अधिक अब भी होता है। व्याख्याता अपने व्याख्यानों में रामायण की चौपाइयों का आधार लेकर जनता पर प्रभाव डालने में आज भी अधिक समर्थ होता है। वास्तव बात तो यह है कि आज दिन जो महत्व इस ग्रन्थ को प्राप्त है वह किसी महान् से महान् संस्कृत ग्रन्थ को भी नहीं। इन बातों पर दृष्टि रख कर जब विचार करते हैं तो यह ज्ञात होता है कि गोस्वामी जी हिन्दी साहित्य के सर्वमान्य कवि ही नहीं हैं, हिन्दू संसार के सर्वपूज्य महात्मा भी हैं।]
मैं पहले कविवर सूरदास जी के विषय में अपनी सम्मति प्रकट कर