पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२६८

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आवश्यकता पड़ने पर वे जटिल से जटिल शैली में लिख सकते थे और फिर दूसरे ही पद में ऐसी शैली का अवलम्बन कर सकते थे जिसमें प्रकाश की किरणों की सी स्पष्टता हो। किसी गुण विशेष में अन्य कवि भले हो उनकी बराबरी कर सके हों, किन्तु सूरदास में अन्य समस्त कवियों के सर्वोत्कृष्ट गुणों का एकत्री भाव है।[]

गोस्वामी तुलसीदास जी की काव्य कला अमृतमयी है। उससे वह संजीवनी धारा निकली जिसने साहित्य के प्रत्येक अङ्ग को ही नवजीवन नहीं प्रदान किया वरन् मृतक प्राय हिन्दू समाज के प्रत्येक अङ्ग को वह जीवनी शक्ति दी जिससे वह बड़े संकट-काल में भी जीवित रह सकी। इसीलिये वे हिन्दी संसार के सुधाधर हैं। गोस्वामीजी की दृष्टि इतनी प्रखर थी और सामयिकता की नाड़ी उन्हों ने इस मार्मिकता से टटोली कि उनकी रचनायें आज भी रुग्न मानसों के लिये रसायन का काम दे रही हैं। यदि केवल अपने-अलौकिक ग्रन्थ राम चरित मानस का ही उन्हों ने निर्माण किया होता तो भी उनकी वह कीर्ति अक्षुण्ण रहती जो आज निर्मल कौमुदी समान भारत-वसुन्धरा में विस्तृत है। किन्तु उनके और भी कई ग्रन्थ ऐसे हैं जिनमें उनकी कीर्ति-कौमुदी और अधिक उज्ज्वल हो गई है और इसीलिये वे कौमुदीश हैं। ब्रजभाषा और अवधी दोनों पर उनका समान अधिकार देखा जाता है। जैसी ही अपूर्व रचना वे ब्रजभाषा में करते हैं वैसी ही अवधी में। रामचरित मानस की रचना अवधी भाषा में ही हुई है। किन्तु गोस्वामी जी की अवधी परिमार्जित अवधी है और यही कारण है कि जब मलिक मुहम्मद जायसी की 'पदमावत' की भाषा आजकल कठिनता से समझी जाती है तब गोस्वामीजी की रामायण को सर्व साधारण समझ लेते हैं। मलिक मुहम्मद जायसी की भाषा के विषय में मैं ऊपर बहुत कुछ लिख आया हूं। वे भी संस्कृत

  1. "Regarding Surdas's place in literature, I commonly add that he justly holds a high one. He excelled in all styles. He could, if occasion required, be more obscure than the sphynu and in the next verse he as clear as a ray of light. Other poets may have equalled him in someparticular quality, but he combined the best qualities of all."