पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२४८

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( २३४ ) काव्य करैया तीन हैं, तुलसी केशव सूर । कविता खेती इन लुनी, सीला बिनतमजूर । यह सम्मति कहां तक मान्य है, इस विषयमें मैं विशेष तर्क वितर्क नहीं करना चाहता। परन्तु यह मैं अवश्य कहूंगा कि इस प्रकार के सर्व-साधा- रण के विचार उपेक्षा-योग्य नहीं होते, वे किसी आधार पर होते हैं । इस- लिये उनमें तथ्य होता है और उनको वहुमूल्यता प्रायः असंदिग्ध होती है। इन तीनों साहित्य-महारथियों में किसका क्या पद और स्थान है इस बात को उनका वह प्रभाव ही बतला रहा है जो हिन्दी-संसार में व्यापक होकर विद्यमान है। मैं इन तीनों महाकवियों के विषय में जो सम्मति रखता हूं उसे मेरा वह वक्तब्य ही प्रगट करेगा जो मैं इनके सम्बन्ध में यथा स्थान लिखूंगा। इन तीनों महान साहित्यकारों में काल की द्दष्टि से सूर- दास जी का प्रथम स्थान है, तुलसीदास जी का द्वितीय और केशवदास जी का तृतीय । इसलिये इसी ऋम से मैं आगे बढ़ता हूं। कविवर सूरदास ब्रजभाषा के प्रथम आचार्य हैं। उन्हों ने ही ब्रजभाषा का वह शृंगार किया जैसा शृंगार आज तक अन्य कोई कवि अथवा महाकवि नहीं कर सका। मेरा विचार है कि कविवर सूरदास जी का यह पद हिन्दी-संसार केलिये आदिम और अंतिम दोनों है। हिन्दीभाषा की वर्तमान प्रगति यह बतला रही है कि ब्रजभाषा के जिस उच्चतम आसन पर वे आसीन हैं सदा वेही उस आसन पर विराजमान रहेंगे; समय अब उनका समकक्ष भी उत्पन्न न कर सकेगा। कहा जाता है , उनके पहले का 'सेन' नामक ब्रजभाषा का एक कवि है। हिन्दी संसार उससे एक प्रकार अपरिचितसा है । उसका कोई ग्रन्थ भी नहीं बतलाया जाता। कालिदासने औरंगज़ेब के समय में हज़ारा नामक एक ग्रन्थ की रचना की थी। उसमें उन्होंने 'सेन' कवि का एक कवित्त लिखा है। वह यह है । जब ते गोपाल मधुबन को सिधारे आली, मधुबन भयो मधु दानव बिषम सों।