पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२४३

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है। उनको रहस्यवाद-चित्रण-प्रणाली, वर्णन-शैली उनका निरीक्षण और उनकी कवि-कम्म्र कुशलता हिन्दी संसार के लिये गौरव की वस्तु है। मैं समझता हूं, हिन्दी भाषा जब तक जीवित रहेगी तब तक उसके साहित्य भाण्डार का एक रत्न पदमावत' भी रहेगा।

मलिक मुहम्द जायसी के सम्बन्ध में डाक्टर ग्रियर्सन की यह सम्मति है:—[]

"वे (मलिक मुहम्मद जायसी) पदमावत के रचयिता थे, जो, मेरी समझ में, मौलिक विषय पर गौड़ी भाषा में लिखी हुई पहली ही नहीं प्रायः एक मात्र कविता पुस्तक है। मैं नहीं जानता कि कोई अन्य ग्रन्थ भी ऐसा होगा जो पदमावत की अपेक्षा अधिक परिश्रमपूर्ण अध्ययन का पात्र हो। निस्सन्देह परिश्रमपूर्ण अध्ययन इसके लिये आवश्यक है क्योंकि साधारण विद्यार्थी के लिये इस पुस्तक की एक पंक्ति का भी कठिनाई से हो बोध गम्य होना सम्भव है, क्योंकि यह जनता की ठेठ भाषा में लिखी गयी है। परन्तु काव्यसौन्दर्य और मौलिकता दोनों के उद्देश्य से इस पुस्तक के अध्ययन में जितना भी परिश्रम किया जाय उचित है।"

मलिक मुहम्मद जायसी के बाद की भी रचनायें प्रेम-मार्गी कवियों

को मिलती हैं और यह परम्परा अठारहवीं शताब्दी तक चलती देखी जाती है। परन्तु मलिक मुहम्मद जायसी के समान कोई दूसरा कवि प्रेम-मार्गी कवियों में नहीं उत्पन्न हआ, इन कवियों में 'उसमान' सत्रहवीं शताब्दी में और नूर मुहम्मद एवं निसार अठारहवीं में हुये हैं, जिनकी रचनायें प्राप्त हुई हैं। सत्रहवीं शताब्दीमें शेख़ नबी और अठारहवीं शताब्दी में क़ासिम शाह

  1. "He was the author of the Padmaval (Rag) which is, I believe, the first poem and almost the only one written in a Gaudian vernacular on an original subject. I do not know a work more deserving of hard study than the Padmavat. It certainly requires it, for scarcely a line is intelligibl to the ordinary scholar, it being couched in the veriest language of the people. But it is well worth any amount, both for its originality and for its postical beauty."