में ईश्वर-परायणता की झलक भी स्थान स्थान पर बड़ी ही मधुर देख पड़ती है। पदमावत के अतिरिक्त उनका 'अखरावट' नामक भी एक ग्रन्थ है। इसमें उन्हों ने प्रेम-मार्ग के सिद्धान्तों और ईश्वर-प्राप्ति के साधनों का वर्णन बोध --सुलभ रीति से किया है। किन्तु उनका विशेष आद्रित ग्रन्थ पदमावत है। अतएव उसमें से विविध भावों के कुछ पद्य मैं नीचे लिखता हूं। पहले संसार की असारता का एक पद्य देखियेः-
१-तौलहि साँस पेट महँ अही।
जौ लहि दसा जाउ कै रही।
काल आइ दिखरायो साँटी।
उठि जिउ चला छाँड़ि कै माटी।
काकर लोग कुटुम घर बारू ।
काकर अरथ दरब संसारू ।
ओही घड़ी सब भयेउ परावा ।
आपन सोइ जो परसा खावा ।
अहे जे हित साथ के नेगी।
सबै लाग काढ़े तेहि बेगी।
हाथ झारि जस चलै जुआरी।
तजा राज होइ चला भिखारी ।
जब लगि जीउ रतन सब कहा ।
भा बिन जीउ न कौड़ी लहा।
पदमावती एवं नागमती के सती होने के समय का यह पद्य कितना मार्मिक है-
२-सर रचि दान पुन्न बहु कीन्हा ।
सात बार फिर भाँवर लीन्हा ।