पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२३

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भाषायें मानी जाती हैं, तो भी इण्डोयोरोपियन भाषा की चर्चा ही से हम प्रस्तुत विषय पर बहुत कुछ प्रकाश डाल सकते हैं, इसलिये इमी भाषा को लेकर आगे बढ़ते हैं। कहा जाता है द्राविड़ भाषाओं को छोड़ कर भारत वर्ष की समस्त भाषायें इण्डोयोरोपियन भाषा वर्ग की हैं, और उन्हीं से प्रसूत हुई हैं। हिन्दी भाषा भी इन्हों भाषाओं में से एक है, अतएव विचाग्ना. यह है कि वह किस प्रकार इण्डोयोगेपियन भाषा से क्रमशः विकसित हो कर इस रूप को प्राप्त हुई । इण्डोयोरोपियन भाषा से प्रयोजन उस वर्ग की भाषा से है. जिसका विस्तार योगेप के अधिकांश देशों, फ़ारस और भारतवर्ष के अधिकतर प्रदेशों में है। पहले इसको इण्डोरियन भाषा कहते थे, परन्तु अब यह नाम बदल दिया गया है। कारण यह बतलाया गया है कि अबतक यह प्रभाणित नहीं हुआ कि योगेप वाले अपने को आर्य मानते थे अथवा नहीं। भारत बाल और इंगन वाले अपने को आय कहते थे, इसलिये इनदयों में जः इण्डोयोगपियन भाषा की शाखा प्रचलित हैं, उनको आय परिवार की भाषा कह सकते हैं। आगे हम इन भाषाओं की चर्चा आयपग्विार के नाम से ही करेंगे।

आयपग्विाम भापा का आदिम प वैदिक संस्कृत में पाया जाता है। यद्यपि अनेक योगेपियन विद्वानों ने इस वैदिक संस्कृत को ही योगे- पियन भाषाओं का भी मूल आधार माना है परन्तु आजकल उसके स्थान पर एक मूल भाषा, लिंग्वना ही पसन्द किया जाता है जिसकी एक शाखा वदिक संस्कृत भी मानी जाती है। इसका विशेष विवेचन आगे मिलेगा, यहां यह विचारणीय है कि वदिक संस्कृत की भाषा साहित्यिक है, अथवा बोलचाल की । इस विषय में अपनं पालिप्रकादा' (पृट २७-२८) नामक ग्रन्थ में बंगाल प्रान्त के प्रसिद्ध विद्वान श्री विधशेखर शास्त्रीने जो लिखा है उनका अनुवाद में आपलोगों के सामने रग्बना हूं---'पग्विनन शीलता बोलचाल की भाषा का स्वभाव है। वह चिरकाल तक एक भाव में नहीं रहती। दश काल और व्यक्ति मंद से भिन्न भिन्न म.प धारण करती है। वदिक भाषा में यह बात पाई जाती है उसमें एक वाक्य का भिन्न प्रयोग देखा जाता है। उस समय कोई कहना अतक कोई कहना शुल्क । एक