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संयोग (वस्ल) के कामुक सूफ़ी प्रेमिकों ने वियोगावस्था का वर्णन भी बड़ा ही मार्मिक किया है। वियोगावस्था में संयोग कामना कितनी प्रवल हो उठती है. इसका दृश्य प्रतिदिन दृष्टिगत होता रहता है । मानव-प्रेम-कहानियों में भी इसके बड़े सुन्दर वर्णन हैं। सूफ़ियों का वियोग यतः ईश्वर सम्बन्धी होता है. इसलिये वह अधिक उदात्त और हृदयग्राही हो जाता है और उसकी व्यापकता भी बढ़ जाती है। मंझन इस वियोग का वर्णन निम्न लिखित पद्यों में किस प्रकार करता है, देखियेः-

विरह अवधि अवगाह अपारा ।
         कोटि माहिं एक परै त पारा ।
बिरह कि जगत अबिरथा जाही?
        बिरह रूप यह सृष्टि सबाही।
नयन बिरह अंजन जिन सारा।
         बिरह रूप दर्पन संसारा ।
कोटि माहिं बिरला जग कोई।
         जाहि सरीर बिरह दुख होई ।
रतन कि सागर सागरहिँ ?
         गज मोती गज कोय
चॅदन कि बन बन उपजइ ?
         बिरह कि तन तन होय ?

अब मलिक मुहम्मद जायसी की कुछ रचनाओं को भी देखिये। प्रेम मार्गी सूफी कवियों में जिस प्रकार वे प्रधान हैं वैसी ही उनकी रचना में भी प्रधानता है। उनकी प्रेम-कहानी लिखने की प्रणाली जैसी सुन्दर है वेसा ही स्थान स्थान पर उसमें सूकी भावों का चित्रण भी मनोरम है। वे कवि ही नहीं थे, वरन् उन पीरों में उनकी गणना की जाती है जो उस समय पहुंचे हुये ईश्वर के भक्त समझे जाते थे। इसलिये उनकी रचनाओं