पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२२६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

कवि ने। इन दोनों का समय पन्द्रहवीं शताब्दी का अन्तिम काल ज्ञात होता है। ये दोनों भी सूफी कवि थे और इन्होंने भी अपने ग्रन्थों में स्थान स्थान पर अपने सम्प्रदाय के सिद्धान्तों का निरूपण बड़ी सरलता के साथ किया है। इन सूफी कवियों में कुछ ऐसी विशेषतायें हैं जो लगभग सब में पाई जाती हैं । पहली बात यह कि सब के ग्रन्थों की भाषा प्रायः अवधी है । सभी ने हिन्दी छन्दोंकोही लिया है, और दोहा-चौपाई में ही अपनी रचनायें की हैं। प्रेम-कहानी ही का कथन उनका उद्देश्य होता है, क्योंकि उसी के आधार से संयोग, वियोग और प्रेम के रहस्यों का निरूपण वे यथाशक्ति करते हैं। इस प्रेम का नायक और नायिका अधिकांश कोई उच्च कुल का हिन्दू प्रायः कोई राजा या रानी होती है। इन सुकवियों की विशेषता यह है कि वे सद्भाव के साथ अपने ग्रन्थ की रचना करते देखे जाते हैं. कटुता बिल्कुल नहीं आने देते । वर्णन में इतनी आत्मीयता होती है कि उनके पढ़ने से यह नहीं ज्ञात होता कि किसी दुर्भावना के वश होकर इनकी रचना की गयी है, या किसी विधर्मी या विजातीय की लेखनी से वह प्रसूत है। प्रेम-मार्गी होने के कारण वे प्रेममार्ग का निर्वाह ही अपनी रचनाओं में करते हैं और सूफी मत की उदारता पर आरूढ़ होकर उसमें ऐसी आकर्षिणी शक्ति उत्पन्न करते हैं जो अन्य लोगों के मानस पर बहुत कुछ प्रभाव डालने में समर्थ होती है। मलिक मुहम्मद जायसी इन सब कवियों में श्रेष्ठ हैं और उनकी कृतियां इस प्रकार के सब कवियों की रचनाओं में विशेषता और उच्चता रखती हैं।

जायसी बड़े सहृदय. कवित्व-शक्ति-सम्पन्न कवि थे। प्रतिभा भी उनकी विलक्षण थी. साथ ही धार्मिक कट्टरता उनमें नहीं पायी जाती। वे अपने पीर. पैग़म्बर और धर्मगुरु की प्रशंशा करते हैं और यह स्वाभाविकता है, विशेषता उनकी यह है कि वे अन्य धर्मवालोंके प्रति उदार हैं और उनको भी आदरकी दृष्टि से देखते हैं। उनका हिन्दू-धर्म का ज्ञान भी विस्तृत है । उसके भावों को वे बडी ही मार्मिकता से ग्रहण करते। पात्रों के चरित्र-चित्रण में उनकी इतनी तन्मयता मिलती है जो यह प्रतीति उत्पन्न करती है कि वे उस समय सर्वथा उन्हीं के भावों में लीन हो गये हैं। इन कवियों को