पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२२५

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( २११ ) त्यों का व्यवहार भी देखा जाता है। इनमें भी पहले रूप को प्राचीन और दूसरे को आधुनिक समझते हैं । परन्तु अब तक दोनों रूप ही गृहीत हैं, कुछ लोग आधुनिक काल में दूसरे प्रयोगों को ही अच्छा समझते हैं । कुछ भाषा मर्मज्ञ कहते हैं कि ब्रज की बोलचाल की भाषा में केवल सर्व- नाम के कर्म कारक में ह कुछ रह गया है जैसे जाहि ताहि' या जिन्हैं, तिन्हैं. आदि में । परन्तु दिन दिन उसका लोप हो रहा है और अब ‘जाहि', वाहि' के स्थान पर जाय वाय' बोलना हो पसंद किया जाता है। किन्तु यह मैं कहूंगा कि 'जाय बाय' आदि को बोलचाल में भले ही स्थान मिल गया हो, पर कविता में अब तक जाहि 'वाहि का अधिकतर प्रयोग है। अवधी और ब्रजभापा को समानता और विशेषताओं के विषय में मैंने अब तक जितना लिखा है वह पर्याप्त नहीं कहा जा सकता, परन्तु अधि-कांश ज्ञातव्य बातें मैंने लीख दी हैं। अवधि और ब्रजभाषा के कवियों एवं महाकवियों की भाषा का परिचय प्राप्त करने और उनके भाषाधिकार का ज्ञान लाभ करने में जो विवेचना की गई है मैं समझता हूँ उसमें वह कम सहायक न होगी। इस लिये अब मैं प्रकृत विषय की ओर प्रवृत्त होता हूं।

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इस शताब्दी के आरम्भ में सब से पहले जिस सहृदय कवि पर दृष्टि पड़ती है वह पद्मावत के रचयिता मलिक मुहम्मद जायसी हैं। यह सूफ़ी कवि थे और सूफ़ी सम्प्रदाय के भावों को उत्तमता के साथ जनता के सामने लाने के लिये ही उन्होंने अपने इस प्रसिद्ध ग्रन्थ को रचना की है। जिन्होंने इस ग्रन्थ को आद्योपान्त पढ़ा है वे समझ सकते हैं कि स्थान स्थान पर उन्होंने किस प्रकार और किस सुन्दरता से सूफ़ी भावों का प्रदर्शन इसमें किया है।

  इनके ग्रन्थ के देखने से पाया जाता है कि इनके पहले 'सपनावती', 'मुगधावती'. 'मृगावती', 'मधुमालती' और प्रेमावती' नामक ग्रन्थों की रचना हो चुकी थी। इनमें से मृगावती और मधुमालती नामक ग्रन्थ प्राप्त हो चुके हैं । शेप ग्रन्थों का पता अब तक नहीं चला।'मृगावती की रचना कुतबन ने की है और मधुमालती की मंझन नामक