पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२२४

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( २१० ) 'उ' के पश्चात् ‘आ का उच्चारण भी ब्रजभाषा के अनुकूल नहीं है । अवधी भाषा का 'दुआर' और 'कुँआर' व्रजभाषा में द्वार और कारू अथवा 'कारों बन जाता है। ऐ और औ का उच्चारण अवधी में अइ और 'अउ' के समान होता है, जैसे 'अउर 'अइसा' कउआ' 'हउआ। परन्तु ब्रजभाषा में उसका उच्चारण प्रायः ऐ और औ' के समान होता है, जैसे 'ऐसा', 'कन्हैया, और कौआ इत्यादि। ब्रजभाषा ओर अवधी दोनों में वर्तमान काल और भविष्य काल के तिङन्त रूप भी मिलते हैं। और उनमें लिंग भेद नहीं देखा जाता। किन्तु व्रजभाषा के वर्तमानकालिक क्रिया के रूप में यह विशेष बात पाई जाती है कि उनमें इस प्रकार की क्रियायें ‘होना धातु के रूप के साथ बोली जाती हैं । पढ़ना' क्रिया का रूप उत्तम पुरुषमें 'पढ़ै हौं' या पठूँ हूँ. मध्यम पुरुप में पढ़ौ हो' ओर अन्य पुरुष में पढ़ै है' होगा । अवधी में भी इसी प्रकार का प्रयोग होता है। गोस्वामी जी लिखते हैं:-

'गहै घाण बिनु बास अशेषा'
         'पंगु चढ़ै गिरवर गहन'

परन्तु भविष्य काल के तिङन्त रूप अवधी और व्रजभाषा में एक ही प्रकार के होंगे। अवधी में होगा 'करिहइ' होइहइ । और ब्रजभाषा में होगा करिहय=करिहै. होइहय=होयहै या है । अवधी के उत्तम पुरुष में होगा खइहउँ किन्तु ब्रजभाषा में होगा खयहै=खैहो' । अन्तर केवल यही होगा कि जहाँ अवधी में ३ का प्रयोग होगा वहाँ व्रजभाषा में य का । पहले सर्वनाम में जब कारक चिन्ह लगाया जाता था तव अवधा और व्रजभाषा दोनों में 'हि का प्रयोग कारक के पहले होता था। परन्तु अब दोनों में हि' को स्थान नहीं मिलता है । जैमें अवधो 'कहिकर और जेहिकर' ‘केकर' और 'जेकर' बन गया है उसी प्रकार व्रजभाषाका काहि- को जाहि को' अब 'काको' जाको बोला जाता है। ब्रजभाषा में आवहिं 'जाहि' का प्रयोग भी मिलता है और उसके दूसरे रूप आवै, 'जाँय' का भी। कुछ लोगों का विचार है कि पहला रूप प्राचीन है और दूसरा आधुनिक । इसी प्रकार 'इमि'. 'जिमि , तिमि के स्थान पर यों 'ज्यों'.