पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२१३

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( १६६ ) करते हैं और अपने को उसका प्रेमिक मान कर प्रेम सम्बन्धी भावों को बड़ी ही मधुरता और सरसता से वर्णन करते हैं। उसके सम्मिलन के लिये जो उत्सुकता उनके हृदय में उत्पन्न होती है उसका बड़ाही मर्मस्पर्शी चित्र उनकी रचनाओं में अंकित है। उनकी विग्ह वेदनायें भी बहुत ही विमुग्धकारी और हृदयद्रवीभूत करने वाली हैं । वे जब अपनी उस अवस्था का वर्णन करते हैं जिस समय उनको इस बात का अनुभव होता है कि वे उससे किसी अवस्था विशेष के कारण पृथक हो गये हैं तो उसमें बड़ी मर्म वेधिनी उक्तियाँ होती हैं जो मनों को बेतरह अपनी ओर खोंचती हैं। उस समय उनके प्रेम मार्ग के इन बड़े विमोहक भावों ने हिन्दू जनता को बहुत कुछ अपनी ओर आकर्षित कर रखा था। पर हिन्दुओं के किसो धर्म संप्रदाय में ऐसो मधुरतम कल्पनाओं का आविष्कार तबतक नहीं हुआ था. जो सफलता के साथ उनका प्रतिकार कर सके । हिन्दू धर्म का भक्ति- मार्ग उच्च कोटि का है और बहुत ही सरस और मधुर भी है. परन्तु उतना सुलभ नहीं, उसमें कुछ गहनता भो है। वह सर्ब साधारण के लिये उतना मोहक नहीं जितना प्रेम । भक्ति में उच्चता है और वह महत्तामय उच्च कोटि के व्यक्तियों पर ही आधारित है। उसमें विशेषता के साथ त्यागमय धार्मिकता है. परन्तु प्रेम में साधारणता है और उसमें सांसारिकता भी पाई जाती है। व्यापक प्रेम या प्रीति की पराकाष्ठा हो भक्ति है। इसी लिये भक्ति से उसमें अधिक व्यवहारिकता है और इस व्यवहारिकता के कारण ही मानव-समाज पर उसका अधिक अधिकार है। प्रेम के आदर्श को न्यूनता हिन्दू संसार में किसी काल में नहीं रही। प्रेम की महत्ता और उसकी लोक प्रियता के आदर्श का अभाव हिन्दु संस्कृतिमें कभी नहीं हुआ। प्ररन्तु यह समय ऐसा था कि जब उसके व्यापक और महान आदशैको ऐसे मधुर और मोहक रूपमें उपस्थित करने की आवश्यकता थी. जो सर्वसाधारण को अपनी ओर आकर्षित कर सके, और सूफो सम्प्रदायके उन प्रभावों को विफल बनावे जो उसके चारों ओर अविरामगति से विस्तृत हो रहे थे। गमावत सम्प्रदाय में भक्ति भावना जितनी प्रबल है, उतनो प्रेम भावना नहीं । भगवान् रामचन्द्र