पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/१९२

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( १७८ कि जिन सिद्धान्तों के कारण उनके सिरपर सन्तमत के प्रवर्तक होने का सेहरा बांधा जाता है वे सिद्धान्त परम्परागत और प्राचीनतम ही हैं। हाँ, उनको जनता के सामने उपस्थित करने में उन्हों ने कुछ चमत्कार अवश्य दिखलाया। कबार साहब के रहस्यवाद को पढ़कर कुछ श्रद्धालु यह कहते हैं कि वे ईश्वर-विद्या के अद्वितीय मर्मज्ञ थे । वे भी अपने को ऐसा ही समझते हैं। लिखते हैंसुर नर मुनि जन औलिया ए सब उरली तीर । अलह राम की गम नहीं, तहँ घर किया कबीर । किसी के श्रद्धा विश्वास के विषय में मुझको कुछ वक्तब्य नहीं । कबीर साहब स्वयं अपने विषय में जो कहते हैं, उसका उद्देश्य क्या था. इस पर मैं बहुत कुछ प्रकाश डाल चुका हूं। इष्ट-सिद्धि के लिये वे जो पथ ग्रहण करना उचित समझते थे. ग्रहण कर लेते थे। प्रत्येक धर्म प्रवत्तक में यह बात देखी जाती है । इसलिये इस विषय में अधिक लिखना पिष्टपेपण है, किन्तु यह मैं स्वीकार करूंगा कि कबीर साहव हिन्दी संसार में रहस्यवाद के प्रधान स्तम्भ हैं उनका रहस्यवाद कुछ पूर्व महजनों की रचनाओं पर आधारित हो, परन्तु उनके द्वारा वह बहुत कुछ पूर्णता को प्राप्त हो गया। उनकी ऐसी रचनाओं में बड़ी ही विलक्षणता और गम्भीरता दृष्टिगत होती है। कुछ पद्य देखिये:---- । १--ऐसा लो तत ऐसा लो मैं केहि विधि कयौं गभीरा लो। बाहर कहूँ तो सत गुरु लाजै भीतर कहूँ तो झूठा लो। बाहर भीतर सकल निरन्तर गुरु परतापै दीठा लो। दृष्टि न मुष्टिन अगम अगोचर पुस्तक लखा न जाईलो। जिन पहचाना तिन भल जाना कहे न कोऊपतिआईलो। मीन चले जल मारग जोवै परम तत्व धौं कैसा लो । पुहुपबास हूं ते अति झीना परम तत्व धौं ऐसा लो।