( १६८ ) समझत नाहिं मोहि सुत नारी । कह कबीर हम युग युग कही। जवहीं चेतो तवहीं सही। . — कबीर बीजक पृ० १२५, ०६२ जो कोई होय सत्य का किनका सो हमको पतिआई। और न मिलै कोटि करि थाकै बहुरि काल घर जाई । कबीर बीजक पृ० २० जम्बू द्वीप के तुम सब हंसा गहिलो शब्द हमार । दास कबीरा अबकी दीहल निरगुन के टकसार । जहिया किरतिम ना हता धरती हता न नीर । उतपति परलै ना हती तबकी कही कबीर । ई जग तो जहई गया भया योग ना भोग। तिल तिल झारि कबीर लिय तिलटी झारै लोग। __कबीर बीजक पृ० ८०, ५९८, ६३२ सुर नर मुनि जन औलिया, यह सब उरली तीर । अलह राम को गम नहीं, तहँ घर किया कबीर । साखी संग्रह पृ० १२५ वे अपनी महत्ता बतला कर ही मौन नहीं हुये बरन हिन्दुओं के समस्त धार्मिक ग्रन्थों और देवताओं की बहुत बड़ी कुत्सा भी की। इस प्रकार के उनके कुछ पद्य प्रमाण-स्वरूप नीचे लिखे जाते हैं:- योग यज्ञ जप संयमा तीरथ व्रतदाना नवधा वेद किताब है झूठे का बाना। कबीर बीजक पृ० ४११ चार वेद षट् शास्त्रऊ औ दश अष्ट पुरान । आसा दै जग बाँधिया तीनों लोक भुलान । कवीर बीजक पृ० १४
पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/१८२
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।