पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/१७२

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पुस्तकालय में सुरक्षित है। जो ग्रन्थ सभा से प्रकाशित हुआ है, उससे इस लिये कुछ पद्य नीचे उद्धृत किये जाते हैं, जिसमें उनकी रचना की भाषा के विषय में कुछ बिचार किया जा सके:—

१—षूणैं पराया न छूटियो, सुणिरे जीव अबूझ।
कविरा मरि मैदान मैं इन्द्रय्यांसूं जूझ।
२—गगनमामा बोजिया पर्यो निसाणै घाव।
खेत वुहार्यो सूरिवाँ मुझ मरने का चाव।
३—काम क्रोध सूं झूझणां चौड़े माझ्या खेत।
सूरै सार सँवाहिया पहर्या सहज सँजोग।
४—अब तो झूझ्याँ हा बणै मुणि चाल्याँघर दूरि।
सिर साहब कौं सौंपता सोच न कोजै सूरि।
५—जाइ पुछौ उस घाइलैं दिवसपीड़ निस जाग।
बाहण हारा जाणि है कै जाणै जिस लाग।
६—हरिया जाणै रूखणा उस पाणी का नेह।
सूका काठ न जाणई कबहूं बूठा मेंह।
७—पारब्रह्म बूठा मोतियाँ घड़ बाँधी सिष राँह।
सबुरा सबुरा चुणि लिया चूक परी निगुराँह।
८—अवधू कामधेनु गहि बाँधी रे।
भाँडा भंजन करै सबहिन का कछू न सूझै आँधारे।
जो व्यावै तो दूध न देई ग्याभण अमृत सरवै।
कौली घाल्यां बीदरि चालै ज्यूं घेरौं त्यूं दरवै।
तिहीं धेन थें इच्छ्यां पूगी पाकड़ि खूटे बाँधी रे
ग्वाड़ा मां है आनँद उपनौ खूटै दोऊ बाँधी रे।