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"खड़ी बोली, बाँगडू, ब्रज, राजस्थानी, कन्नौजी, बैसवाड़ी, अवधी इत्यादि में रूपों और प्रत्ययोंका परस्पर अधिक भेद होते हुये भी सब हिन्दीके अन्तर्गत मानी जाती हैं! बनारस, गाज़ीपूर, गोरखपुर बलिया आदि जिलों में आयल-आइल, गयल-गइल, हमरा तोहरा आदि बोले जानेपर भी वहां की भाषा हिन्दी के सिवाय दूसरी नहीं कही जाती। कारण है शब्दावलीकी एकता। अतः जिस प्रकार हिन्दी साहित्य बीसलदेव रासो पर अपना अधिकार रखता है, उसी प्रकार विद्यापति की पदावली पर भी।"
हिन्दी भाषा और साहित्यकार यह लिखते हैं[१]:—
"सारे बिहार-प्रदेश और उसके आसपास संयुक्त प्रदेश, छोटा नागपुर और बंगाल में कुछ दूर तक बिहारी भाषा बोली जाती है। यद्यपि बँगला और उड़िया की भांति बिहारी भाषा भी मागध अपभ्रंश से ही निकली है तथापि अनेक कारणों से इसकी गणना हिन्दी में होती है और ठीक होती है।"
"बिहारी भाषामें मैथिली, मगही' और भोजपुरी तीन बोलियाँ हैं। मिथिला या तिरहुत और उसके आसपास के कुछ स्थानों में मैथिली बोली जाती है। पर उसका विशुद्ध रूप दरभंगे में पाया जाता है। इस भाषा के प्राचीन कवियों में विद्यापति ठाकुर बहुत ही प्रसिद्ध और श्रेष्ठ कवि हो गये हैं, जिनकी कविता का अब तक बहुत आदर होता है। इस कविता का अधिकांश सभी बातों में प्रायः हिन्दी ही है।"
आज कल बिहार हिन्दी भाषा-भाषी प्रान्त माना जाता है। वहां के विद्यालयों और साहित्यक समाचार पत्रों अथच मासिक पुस्तकों में हिन्दी भाषा का ही प्रचार है। ग्रन्थ-रचनायें भी प्रायः हिन्दी भाषा में ही होती हैं और वहाँ के पठित समाज की भाषा भी हिन्दी ही है। ऐसी अवस्था में बिहारी भाषा पर हिन्दी भाषा का कितना अधिकार है यह अप्रकट नहीं।
मैं समझता हूं विद्यापति की रचनाओं पर हिन्दी भाषा का कितना स्वत्व है, इस विषय में पर्याप्त लिखा जा चुका। मैंने उनकी रचना इसी
- ↑ देखिये 'हिन्दी भाषा और साहित्य' का पृ॰ ३९