पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/११२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(६८)

लिपि को । लिपि की अपूर्णता प्रायः भाषा की पूर्णता का बाधक होती है। यह ज्ञात है कि उर्दू अरबी लिपि में लिखी जाती है अरबी लिपि में हिन्दी का टवर्ग है ही नहीं, उसमें हिन्दी के ख, घ, छ, झ, थ, ध, क, भ अक्षरों का भी अभाव है। उर्दू वालों ने एक नहीं, अनेक चिन्हों का उद्भभावन कर अपने अभावों की पूर्ति की, और इस प्रकार अपनी लिपि को पूर्ण बना लिया है। रोमन अक्षरों को पूर्ण बनाने के लिये आये दिन इस प्रकार की उद्भभावनायें होती ही रहती हैं। फिर हिन्दी, वह हिन्दी पीछे क्यों रहे, जो सभी लिपियों से शक्तिशालिनी है। और जिसमें ही यह गुण है, कि जो लिखा जाता है, वही पढ़ा जाता है। यदि अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करके, कोई लिपि पूर्ण बन सकती है, तो हिन्दी में यह शक्ति सबसे अधिक है । वह अपूर्ण क्यों रहे, और क्यों यह प्रकट करे कि वह न्यूनताओं से भरी है, और पूर्णता लाभ करने की उसमें शक्ति नहीं ।

अरबी फ़ारसी लिपियों में जो ऐसे वर्ण हैं, जिनका उच्चारण हिन्दी वर्णों के समान है, उनके लिखने में कुछ परिवर्तन नहीं होता, वरन् फ़ारसी अरबी के कई वर्णों के स्थान पर हिन्दी का एक ही वर्ण प्रायः काम देताहै। परिवर्तन उसी अवस्था में होता है. जब उनमें फ़ारसी अरबी वर्णों से अधिकतर उच्चारण की विभिन्नता पाई जाती है। नीचे कुछ इसका वर्णन किया जाता है।

अरबी में कुल २८ अक्षर हैं, इनमें फ़ारसी भाषा के चार विशेष अक्षरों पे, चे, ज़े, गाफ़ के मिलाने से वे ३२ हो जाते हैं उनको मैं नीचे लिखता हूं-- SasurbeFoorjaisireena इनमें से, से, हे, साद, जाद, तो, जो, जैन और काफ़ अरबी के विशेष अक्षर हैं—फारसी और अरबी के विशेष अक्षरों को, निम्न लिखित शेर में स्पष्ट किया है- सावो, हावो, सादो, ज़ादो, तावो. जावो, औन, क़ाफ़ । हर्फे ताज़ी