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८०० वर्ष तक उनका शासन चलता रहा। विजेता की भाषाका कितना प्रभाव विजित जाति पर पड़ता है, यह अप्रकट नहीं। इस आठ सौ वर्ष के बहुव्यापी समय में उसने कितना अधिकार भारतीय भाषाओं पर जमाया, इसका प्रमाण वे स्वयं दे रही हैं। हिन्दी भाषा वहांकी भाषा थी, जहां पर मुसल्मानोंके साम्राज्य का केन्द्र था, और जहां उनकी विजय वैजयन्ती उस समय तक उड़ती, रही जबतक उनका साम्राज्य ध्वंस नहीं हुआ। इसीलिये हिन्दी भाषा पर उनकी भाषा का बहुत अधिक प्रभाव देखा जाता है। अरबी मुसल्मानों की धार्मिक भाषा थी। विजयी मुसल्मान भारत में अरब से ही नहीं, ईरान और तुर्किस्तान से भी आये। इसलिये हिन्दी भाषा पर अरबी, फ़ारसी और तुर्की तीनों का प्रभाव पड़ा। इन तीनों भाषाओं के शब्द अधिकता से उसमें पाये जाते हैं। अधिकता का प्रत्यक्ष प्रमाण उर्दू है, जो कठिनता से हिन्दी कही जा सकती है।

इन भाषाओं के अधिकतर शब्द संज्ञा रूप में गृहीत हुए हैं। मुसल्मानों के साथ बहुत से ऐसे पदार्थ और सामान भारत में आये, जिनका कोई संस्कृत और देशज नाम नहीं था, इसलिये हिन्दी में उनका अरबी, फ़ारसी आदि नाम ही व्यवहार में आया। जैसे साबुन, चिलम, नैचा, हुक्का, रिकाबी, तश्तरी आदि। प्रायः देखा जाता है कि शिक्षितजन ही नहीं, अपठित लोग भी राजकीय भाषा बोलने में अपना गौरव समझते हैं, इस कारण अनेक संस्कृत और हिन्दी शब्दों के स्थान पर भी अरबी, फ़ारसी एवं तुर्की शब्दोंका प्रचार हुआ। और यह दूसरा हेतु हिन्दीमें विदेशी शब्दों के आधिक्य का हुआ।

आज कल वायु, मसिभाजन, लेखनी आदि के स्थान पर हवा 'दवात' और क़लम आदि का ही अधिक प्रयोग देखा जाता है। नीचे लिखे शब्दों जैसे अनेक शब्द ऐसे हैं, कि जिनके स्थान पर हम गढ़े शब्दों का ही प्रयोग कर सकते हैं, फिर भी वे इतने सुबोध न होंगे, इसलिये ऐसे शब्द ही प्रायः मुखों से निकलते, और उनकी व्यापकता हिन्दी में बढ़ाते हैं—

मज़दूर, वकील, गुलाब, कोतल, परदा, रसद कारीगर आदि