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हिंदी भाषा पूर्वी भाषाओं में जहाँ लघु उच्चारणवाला ए और श्री होता है, वहीं बुंदेलखंडी में इ और उ होता है, जैसे, घोड़िया, घुड़िया। कहीं कहीं ऐसे रूप भी मिलते हैं, जैसे, विलेवा, चिरैवा आदि। हिंदी की विभा- पायों में संशाओं के पांच रूप होते हैं-अकारांत, श्राकारांत, वाकारांत और "ौवा" तथा "श्रीना" से अंत होनेवाले; जैसे, घोड़, घोड़ा, घोड़वा, घोड़ौवा, घोड़ौना। पर सव भाषाओं में ये सव रूप नहीं मिलते। हिंदी के प्राकारांत पुल्लिंग शब्द बुंदेली में प्रजमापा के समान आकारांत हो जाते हैं। पर संबंधसूचक शब्दों में यह विकार नहीं होता; जैसे दादा, काका। हिंदी में जो स्त्रीलिंग शब्द 'इन' प्रत्यय लगाने से बनते हैं, वे बुंदेली में 'नी' प्रत्यय लेते हैं। जैसे तेली-तेलिन; धुं तेलनी। बुंदेली के कारक हिंदी के ही समान होते हैं। आकारांत तद्भव संशाओं का विकारी रूप एकवचन में ए और बहुवचन में अन होता है; जैसे, एक- वचन, घोड़ो, चिकारी-घोड़े; यहुवचन, घोड़े, विकारी-घोड़न। दूसरे प्रकार की पुल्लिंग संशाएँ एकवचन में नहीं बदली; परंतु कर्ता के तथा विकारी रूप के बहुवचन में इनके अंत में "अन" पाता है। कमी कमी कुछ प्रकारांत शब्दों का बहुवचन नाँ से भी बनता है। "इया" से अंत होनेवाले स्त्रीलिंग शब्दों का बहुवचन "इयो" और विकारी बहुवचन "इयन" लगाने से बनता है। दूसरे प्रकार के स्त्रीलिंग शब्दों का कर्ता बहुवचन 4 प्रत्यय लगाने से बनता है। ईकारांत शब्दों के बहुवचन में "ई" और विकारी बहुवचन में "अन" या "इन" प्रत्यय लगता है। बुंदेलखंडी में जो विभक्तियां लगती हैं, वे इस प्रकार हैं- फर्ता-विकारी फर्म, संपदान कों.खों. करण, अपादान से, से, सों सर्वध को, के, की अधिकरण बुंदेली में सर्वनामों के रूप इस प्रकार होते हैं- एकवचन कर्ता विकारी मैंने संबंध मोको, मेरो, तोको, तेरो, मोरो, मोने तारो, ताने ने, ने