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पाँचवाँ अध्याय साहित्यिक हिंदी की उपभापाएं हमने ऊपर हिंदी के विकास के भिन्न भिन्न कालों में भिन्न भिन्न योलियों के नाम दिए हैं। इनमें मुख्य राजस्थानी, अवधी, ब्रजभापा हिदी की अप और खड़ी योली* हैं। बुंदेलखंडी स्थूल दृष्टि से ब्रज भाषा के अंतर्गत आती है। अब हम भाषाएँ या बोलियाँ wan इन पर अलग अलग विचार करेंगे। (१) राजस्थानी भापा-यह भापा राजस्थान में बोली जाती है। इसके पूर्व में ब्रजभापा और बुंदेली, दक्षिण में बुंदेली, मराठी, भीली, खानदेशी और गुजराती, पश्चिम में सिंधी और पश्चिमी पंजावी तथा उत्तर में पश्चिमी पंजाबी और बांगरू भापात्रों का प्रचार है। इनमें से मराठी, सिंधी और पश्चिमी पंजायी बहिरंग शाखा की भाषाएँ है और शेप सब अंतरंग शाखा की भाषाएँ हैं। जहाँ इस समय पंजाबी, गुजराती और राजस्थानी भाषाओं का, जो अंतरंग भाषाएँ हैं, प्रचार है, वहाँ पूर्व काल में बहिरंग मापाओं का प्रचार था। फ्रमशः अंतरंग समुदाय की भापाएँ इन स्थानों में फैल गई और बहिरंग समुदाय की भापात्रों को अपने स्थान से च्युत करके उन्होंने उन स्थानों में अपना अधिकार जमा लिया। आधुनिक राज- स्थानी में बहिरंग भापानों के कुछ अवशिष्ट चिह्न मिलते हैं। जैसे श्रा, ए, ऐ श्रीरा के उच्चारण साधारण न होकर उससे कुछ भिन्न होते हैं। इसी प्रकार छ का उच्चारण स से मिलता जुलता और शुद्ध सका ह के समान होता है। इसके अतिरिक्त राजस्थानी भाषाओं की संज्ञा का. विकारी रूप बहिरंग भाषाओं के समान श्राकारांत होता है और संबंध कारक का चिल्ल बँगला के समान र होता है। . बहिरंग भाषायों को उनके स्थान से हटाकर अंतरंग भापात्रों के प्रचलित होने के प्रमाण कई ऐतिहासिक घटनाओं से भी मिलते हैं। महाभारत के समय में पंचाल देश का विस्तार चंबल नदी से हरद्वार

  • साहित्यिक हिंदी और भाषा-शास्त्रीय हिंदी में जो अंतर है उसका उल्लेस

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