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द्वितीय संस्करण की भूमिका

संवत् १९८७ में इस पुस्तक का पहला संस्करण प्रकाशित हुआ अब सात वर्ष के अनंतर इसके दूसरे संस्करण के प्रकाशित होने का अवसर आया है। यद्यपि मेरी इच्छा थी कि इस दूसरे संस्करण में बहुत कुछ उलट-फेर कर दिया जाय और आधुनिक अनुसंधानों को ध्यान में रखते हुए इसको ऐसा रूप दिया जाय जो सर्वधा समयानुकूल हो पर मैं इस इच्छा के अनुसार सर्वथा कार्य न कर सका, यद्यपि अनेक स्थानों पर परिवर्तन और परिवर्धन कर दिया गया है जिससे मैं समझता हूँ कि इस पुस्तक की उपयोगिता बहुत कुछ बढ़ गई है। भाषा खंड में कुछ अध्याय इधर-उधर कर दिए गए हैं, दूसरे अध्याय में परिवर्तन कर दिया गया है और अंतिम अध्याय में बहुत कुछ बढ़ा दिया गया है। साहित्य खंड में अनेक परिवर्तनों के अतिरिक्त योग धारा पर एक नया अध्याय जोड़ दिया गया है और अंतिम अध्याय को दो अध्यायों में बाँट दिया गया है। मुझे आशा है कि ये सब परिवर्तन और परिवर्धन पुस्तक की उपयोगिता को बढ़ाने मे सहायक हुए हैं।

इस संस्करण के प्रस्तुत करने में मुझे अपने अनेक शिष्यों से सहायता मिली है। इनमें पं॰ नंददुलारे वाजपेयी, डाक्टर पीतांवरदत्त बड़थ्वाल और पं॰ पद्मनारायण आचार्य मुख्य हैं जिनके प्रति मैं कृतज्ञता प्रदर्शित करना अपना परम धर्म समझता हूँ।

काशी श्यामसुंदरदास
२७–५–९४