पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३७४

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वारहवाँ अध्याय आधुनिक काल गद्य श्राधुनिक युग की सबसे बड़ी विशेषता है खड़ी बोली में गद्य का विकास। इस भाषा का इतिहास बड़ा ही रोचक है। यह भापा मेरठ के चारों ओर के प्रदेश में बोली जाती है और पहले गद्य का विकास वहीं तक इसके प्रचार की सीमा थी, बाहर इसका बहुत कम प्रचार था। पर जय मुसलमान इस देश में बस गए और उन्होंने यहाँ अपना राज्य स्थापित कर लिया, तव दिल्ली में मुसलमानी शासन का केंद्र होने के कारण विशेष रूप से उन्होंने उसी प्रदेश की भापा खड़ी बोली को अपनाया। यह कार्य एक दिन में नहीं हुआ। श्रस्य, फारस और तुर्किस्तान से आए हुए सिपाहियों को यहाँ चालों से वातचीत करने में पहले बड़ी कठिनता होती थी। न ये उनकी अरवी, फारसी समझते थे और न चे इनकी हिंदधी। पर पिना धाग्व्यवहार के काम चलना असंभव था, अतः दोनों ने दोनों के कुछ कुछ शब्द सीखकर किसी प्रकार श्रादान प्रदान का मार्ग निकाला। यों मुसलमानों की उर्दू (छावनी ) में पहले पहल एक खिचड़ी पकी जिसमें दाल चावल सब खड़ी बोली के थे सिर्फ नमक श्रागंतुकों ने मिलाया। श्रारंभ में तो यह निरी बाजारू वोली थी, पर धीरे धीरे व्यवहार बढ़ने पर भार मुसलमानों को यहाँ की भाषा के ढांचे का ठीक ठीक शान हो जाने पर इसका रूप कुछ स्थिर हो चला। जहां पहले शुद्ध, अशुद्ध वोलनेवालों से सही गलत बोलवाने के लिये शाहजहाँ को "शुद्धौ सहीह इत्युक्ती ह्यशुद्धो गलतः स्मृतः" का प्रचार करना पड़ा था यहाँ श्रव इसकी कृपा से लोगों के मुँह से शुद्ध-अशुद्ध न निकलकर सही गलत निकला करता है। श्राजकल जैसे अगरेजी पढ़े-लिखे भी अपने नाकर से एक ग्लास पानी न मांगकर एक गिलास ही मांगते हैं, वैसे उस समय मुख-मुख उचारण और परस्पर योध-सौकर्य के अनुरोध से ये लोग अपने ओजवेक का उजयक, कुतका का कोतका कर लेने देते और स्वयं करते थे, पवं ये लोग बेरहमन सुनकर भी नहीं चौकते थे। वैसवाड़ी हिंदी,