पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३७१

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श्राधुनिक काल ३७१ मानव-प्रकृति की विभिन्न कोमल दशाओं और अंतर्दशाओं ने भी उनके हृदय को ध्वनि-पूर्ण किया है। पल्लव में उनकी कविताएँ बहुधा प्रकृति से ही संबंध रखती हैं। ग्रंथि प्रेम की ओर अग्रसर हुई है। वीणा और गुजन में अन्य नाना प्रकार की सुख-दुःख की अनुभूतियों ने गीतों का रूप धारण किया है। सुमित्रानंदन पंत में कल्पना का चमत्कार, भावुकतासय प्रगल्भता और शब्द-लालित्य प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। खड़ी वोली के रूखेपन को दूर कर उसमें काव्योपयोगी मधुरता लाने में उनका सबसे अधिक हाथ है। उनकी रचनाओं में सड़ी वाली यहत कुछ कोमल होकर आई है। इनके अतिरिक्त पंडित मोहनलाल महतो की रचनाओं में भी रहस्यवाद की छाप है। रवींद्रनाथ को काव्यगुरु स्वीकार करनेवाले ये ही हैं, यद्यपि रवींद्र की कविता की थोड़ी बहुत छाया सबमें मिलती है। श्री महादेवी वर्मा में भी रहस्य भावना का प्राधिस्य है। जिस कसक और अंतर्चेदना से प्रेरित होकर उनका संगीत फूट पड़ता है, वह सांसारिक अभाव से जनित नहीं, किसी जगवाह्य वासना से उद्भूत है। उनकी कविता निस्संदेह हृदय पर चोट करनेवाली होती है। अब तक की कविता का ऊपर जो विवरण दिया गया है, उससे यह तो प्रकट होता है कि कविता की अनेकमुखी प्रगति इस युग में हो . रही है, पर साथ ही यह भी प्रकट होता है कि हिंदी कविता का का विशेष अंतप्टि-संपन्न महान् कवियों का अभ्युदय भविष्य अव तक नहीं हुआ है। यह युग हिंदी के सर्वतो- मुख विकास का है। पश्चिमीय शैलियों का ग्रहण इस युग की प्रधान विशेषता है। साहित्य के प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति हो रही है। फिर भी श्रव तक परिवर्तन का ही युग चत रहा है। परिवर्तन के युग में जीवन की महान् और चिरकालीन भावनाओं को लेकर काव्यरचना करना प्रायः असंभव होता है। साहित्यकारों का लक्ष्य जब तक परिवर्तन की ओर से हटकर जीवन की ओर नहीं जाता, तब तक उत्कृष्ट साहित्य की सृष्टि नहीं हो सकती। परंतु इस समय देश की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति भी अच्छी नहीं है। प्रतिभाशाली अनेक व्यक्ति साहित्यक्षेत्र से अलग काम करते हैं। अब तक साहित्य जीवन की गहनता के बाहर का दिख- लाऊ नंदन-निकुंज बना हुआ है। इसलिये सच्चे कर्मनिष्ठ उस अोर से विरक्त रहते हैं। साहित्य के लिये यह दुर्भाग्य की बात है। रूस और फ्रांस के उत्कृष्ट साहित्यकार प्रवल क्रांतियों के भीतर से उत्पन्न हुए थे, तमाशा देखनेवालों के अंदर से नहीं। भारत में भी क्रांति का वैसा ही