पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३४०

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३४० हिंदी साहित्य पाया था। कहीं कहीं तो उसमें अश्लीलता भी था गई थी। परंतु तत्कालीन स्थिति का विचार करते हुए और यह समझते हुए कि उन्होंने अपनी भावनाओं का कलुप राधा-कृष्ण को ही अर्पण कर बहुत कुछ पाप-परिहार कर लिया था, उन्हें क्षमा कर देना पड़ेगा। यद्यपि यह निश्चित है कि स्थायी साहित्य में रीति काल के सौदर्योपासक और प्रेमी कवियों का स्थान अमर है, पर अमर साहित्य के वर्गीकरण में चे किस कक्षा में रखे जाय यह विचारणीय है। प्रबंध और मुक्तक की दृष्टि से स्थायी साहित्य का वर्गीकरण नहीं हो सकता। यह ठीक है कि प्रबंध के भीतर से जीवन के व्यापक तत्त्वों पर कवि-दृष्टि के ठहरने की अधिक संभावना रहती है; परंतु मुक्तक इसके लिये विल- कुल अनुपयुक्त हो, यह बात नहीं है। हिंदी के भक्त कवियों ने फुटकर गीतों से और उमर खैयाम ने मुक्तक रुयाइयों की सहायता से जीवन के चिरंतन सत्यों की जैसी मार्मिक व्यंजना की है, यह मुक्तक काव्य के महत्त्व को प्रत्यक्ष कर देती है। अँगरेजो के श्रेष्ठ कवियों के लीरिक्स भी इसके उदाहरण हैं। हमें यदि श्रेणी-विभाग करने को कहा जाय तो हम कवियों की कृतियों की परीक्षा करते हुए यह पता लगायेंगे कि जीवन के जिस अंग को लेकर चले है, यह सत्य है या नहीं, महत्त्वपूर्ण हैं या नहीं। सत्य और महत्त्वपूर्ण होने के लिये जीवन का अनुभव करने, उसके रहस्य समझने, उसके सौंदर्य का साक्षात्कार करने तथा उसकी समस्याओं को सुलझाने की श्रावश्यकता होगी। कवि को तमाशाई न बनकर बाहर से उछल कूद करने की श्रावश्यकता नहीं है, उसे जीवन के रंगमंच का प्रतिभाशाली नायक चनकर अपना कार्य करना पड़ता है। जितनी सरलता, स्पष्टता और सुंदरता के साथ वह यह कार्य कर सकेगा, उतनी ही सफलता का अधिकारी होगा। जब तक कवि जीवन-सरिता में अवगाहन न कर बाहर से उसके घाटों की शोमा देखता रहेगा, तब तक उसको रचना न संगत ही हो सकेगी श्रार न महत्त्वपूर्ण। घाटों की शोभा देसने से उसे इंद्रिय-सुख भले ही प्राप्त हो, पर वह सुख न मिलेगा जिसे श्रात्मप्रसाद या परनिवृत्ति कहते है। ऐसा करके वह कुछ समय के लिये साहित्य की परीक्षा समिति से सफलता का सम्मति-पत्र भले ही पा जाय, पर जब सैकड़ों वर्षों के अनं- तर जीवन-संबंधी मौलिक संदेश सुनानेवालों और उसके सच्चे सौंदर्य को प्रत्यक्ष कर दिखानेवालों की खोज होने लगेगी, तब उसे कान पूछेगा? साहित्य की जांच की यही सर्वोत्तम कसौटी है। रीति काल के अधिकांश फवियों को बँधी हुई लीक पर चलना पड़ा, उन्हें अपनी