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आधुनिक भाषाएँ ३३ (५) बुंदेली--यह बुंदेलखंड की भाषा है और प्रजभापा के क्षेत्र के दक्षिण में बोली जाती है। शुद्ध रूप में यह झांसी, जालौन, हमीर- पुर, ग्वालियर, भूपाल, ओड़छा, सागर, नरसिंहपुर, सिवनी तथा होशंगावाद में वोली जाती है। इसके कई मिश्रित रूप दतिया, पन्ना, चरखारी, दमोह, चालाघाट तथा छिंदवाड़ा के कुछ भागों में पाए जाते हैं। बुंदेली के बोलनेवाले लगभग ६६ लाख है। मध्यकाल में बुंदेल- खंड में अच्छे कवि हुए हैं पर उनकी भाषा व्रज ही रही है। उनकी व्रजभापा पर कभी कभी बुंदेली की अच्छी छाप देख पड़ती है। ____ मध्यवर्ती' कहने का यही अभिप्राय है कि ये भाषाएँ मध्यदेशी भापा और वहिरंग भाषाओं के बीच की कड़ी है अतः उनमें दोनों के मध्यवर्ती भाषाएँ लक्षण मिलते हैं । मध्यदेश के पश्चिम की भापायों ' में मध्यदेशी लक्षण अधिक मिलते हैं पर उसके पूर्व की 'पूर्वी हिंदी में पहिरंग वर्ग के इतने अधिक लक्षण मिलते हैं कि उसे बहिरंग वर्ग की ही भाषा कहा जा सकता है। जैसा पीछे तीसरे ढंग के वर्गीकरण में स्पष्ट हो गया है, ये मध्य- घर्ती भाषाएँ सात हैं-पंजावी, राजस्थानी, गुजराती, पूर्वी पहाड़ी, केंद्रीय पहाड़ी, पश्चिमी पहाड़ी और पूर्वी हिंदी। ये सातो. भाषाएँ हिंदी को-मध्यदेश की भाषा को--घेरे हुए हैं। साहित्यिक और राष्ट्रीय दृष्टि से ये सब हिंदी की विभापाएँ (अथवा उपभाषाएँ) मानी जा सकती है पर भापाशास्त्र की दृष्टि से ये स्वतंत्र भाषाएँ मानी जाती हैं। इनमें से पहली छः में मध्यदेशी लक्षण अधिक मिलते हैं पर पूर्वी हिंदी में बहिरंग लक्षण ही प्रधान हैं। पूरे पंजाव प्रांत की भाषा को 'पंजाबी' कह सकते हैं। इसी से कई लेखक पश्चिमी पंजावी और पूर्वी पंजाबी के दो भेद करते हैं पर भाषा. सा शास्त्री पूर्वी पंजाबी को पंजावी कहते हैं श्रतः हम भी पंजावी का इसी अर्थ में 'व्यवहार करेंगे। पश्चिमी पंजावी को लहँदा कहते हैं। अमृतसर के आसपास की भाषा शुद्ध पंजावी मानी जाती है। यद्यपि स्थानीय बोलियों में भेद मिलता है पर सच्ची विभाषा डोगी ही है। जंवू रियासत और कांगड़ा जिले में होनी बोली जाती है। इसकी लिपि तक्करी अथवा टकरी है। टक्क जाति से इसका संबंध जोड़ा जाता है। पंजावी में थोड़ा साहित्य भी है। पंजावी ही एक ऐसी मध्यदेश से संबद्ध भाषा है जिसमें संस्कृत और फारसी शब्दों की भरती नहीं है। इस मापा में वैदिक-संस्कृत-सुलभ रस और सुंदर पुरुषत्व देख पड़ता है। इस भाषा में इसके बोलनेवाले