पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३०३

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रामभक्ति शाखा ३०३ है। गोसाई चरित तथा तुलसी-चरित दोनों के अनुसार गोस्वामीजी का जन्म-संवत् १५५४ और स्वर्गवास-संवत् १६८० ठहरता है; उनका जीवनात यद्यपि गोस्वामीजी का मृत्यु-संवत् निस्संदेह "T" १६८० था पर उनके जन्मकाल के संबंध में डाक्टर ग्रियर्सन ने शंका की है और जनश्रुतियों के श्राधार पर उसे १५८६ माना है। तुलसीदास युक्तप्रांत के बांदा जिले में राजापुर गाँव के निवासी थे। ये सरयूपारीण ब्राह्मण थे। इनके पिता श्रात्मा- राम पत्यौजा के दवे और इनकी माता हुलसी थीं जिनका उल्लेख अकबर के दरवार के रहीम खानखाना ने एक प्रसिद्ध दोहे में किया है। लड़कपन में ही इनके माता-पिता द्वारा परित्यक्त होने की जनश्रुति प्रचलित है जिससे इनके अभुक्त मूल में जन्म लेने की बात की कुछ लोगों ने कल्पना की है। पर घाया वेणीमाधवदास ने इस घटना का पूरा विवरण देकर सब प्रकार की कल्पना और अनुमान को शांत कर दिया है। बाल्यावस्था में थाश्रयहीन इधर उधर घूमने-फिरने और उसी समय गुरु द्वारा रामचरित सुनने का उल्लेख गोस्वामीजी की रचनाओं में मिलता है। कहा जाता है कि इनके गुरु वाया नरहरि थे जिनका स्मरण गोस्वामीजी ने रामचरितमानस के प्रारंभ में किया है। संभवतः उनके ही साथ रहते हुए इन्होंने शास्त्रों का अध्ययन किया। गोस्वामीजी के अध्यापक शेप सनातन नामक एक विद्वान् महात्मा कहे जाते हैं जो काशी-निवासी थे और महात्मा रामानंद के आश्रम में रहते थे। स्मात वैष्णवों से शिक्षा-दीक्षा पाकर गोस्वामीजी भी उसी मत के अवलंबी बने। स्मार्त वैष्णव स्मृति-प्रतिपादित धार्मिक रीतियों को मानते हैं, पंच देवों की उपासना उनके यहाँ प्रचलित है यद्यपि वे इष्टदेव को प्रधानता अवश्य देते हैं। गोस्वामीजी का अध्ययन-काल लगभग १५ वर्ष तक रहा। शिक्षा समाप्त कर चे युवावस्था में घर लौटे, क्योंकि इसी समय उनके विवाह करने की बात कही जाती है। ___गोस्वामीजी के विवाह के संबंध में कुछ शंकाएँ की जाती हैं। शंका का श्राधार उनका "ब्याह न घरेखी जाति-पाति ना चहत हो" पद्यांश माना जाता है, परंतु उनके विवाह और विवाहित जीवन के संबंध में जो किवदंतियाँ प्रचलित हैं और जो कुछ लिखा मिलता है उन पर सहसा अविश्वास नहीं किया जा सकता। गोस्वामीजी का पती- प्रेम प्रसिद्ध है और पती ही के कारण इनके विरक्त होकर भक्त बन जाने की बात भी कही जाती है। स्त्री के अपने मायके चले जाने पर तुलसीदास का प्रेम-विह्वल होकर घोर वर्ग में अपनी ससुराल जाना