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हिंदी भाषा १५-~-श्रासामी (श्रा०) सूचना--भीली गुजराती में और खानदेशी राजस्थानी में अंत. भूत हो जाती हैं। - हम ग्रियर्सन के इस अंतिम वर्गीकरण को मानकर ही आधुनिक देशभाषाओं का संक्षिप्त परिचय देंगे। भारतवर्ष के सिंधु, सिंध और सिंधी के ही दूसरे रूप हिंदु, हिंद और हिंदी माने जा सकते हैं, पर हमारी भाषा में श्राज ये भिन्न भिन्न शब्द माने जाते हैं। सिंधु एक नदी को, सिंध एक देश को और सिंधी उस देश के निवासी को कहते हैं, तथा फारसी से आए हुए हिंदु, हिंद और हिंदी सर्वथा भिन्न अर्थ में श्राते हैं। हिंदू से एक जाति, एक धर्म अथवा उस जाति या धर्म के माननेवाले व्यक्ति का वोध होता है। हिंद से पूरे देश भारतवर्ष का अर्थ लिया जाता है और हिंदी एक भाषा का वाचक होता है। प्रयोग तथा रूप की दृष्टि से हिंदवी या हिंदी शब्द फारसी भापा का है और इसका अर्थ 'हिंद का होता है, अतः यह फारसी ग्रंथों में हिंद हिंदी देश के वासी और हिंद देश की भापा दोनों अर्थो भिन्न अर्थ "' में अाता था और आज भी श्रा सकता है। पंजाब का रहनेवाला दिहाती श्राज भी अपने को भारत- धासी न कहकर हिंदी ही कहता है, पर हमें श्राज हिंदी के भापा संबंधी अर्थ से ही विशेष प्रयोजन है। शब्दार्थ की दृष्टि से इस अर्थ में भी हिंदी शब्द का प्रयोग हिंद या भारत में बोली जानेवाली किसी भार्य अथवा अनार्य भाषा के लिये हो सकता है, किंतु व्यवहार में हिंदी उस बड़े भूमिभाग की भाषा मानी जाती है जिसकी सीमा पश्चिम में जैसलमेर, उतर-पश्चिम में अंबाला, उत्तर में शिमला से लेकर नेपाल के पूर्वी छोर ___* कुछ लोग स्वय "हिंदी" शब्द को फारसी बतलाते हैं और कहते हैं कि इसमें हिंद शब्द के अत में जो "ई" है, वह फारसी की "याए निस्वती" ( संबंध. सूचक य या ई) है। ऐसी दशा में प्रश्न हो सकता है कि फिर अवधी, विहारी और मराठी आदि में जो ई है वह कैसी है ? दूसरे इस अर्थ का योधक ई प्रत्यय पाली में भी लगता है। जैसे--अप्पमत्तो अय गधी याय तगरचदनी (धम्मपद ४१५६)। अतः यह कहना कि यह फारसी का प्रत्यय है ठीक नहीं है। यह विषय हमारे प्रस्तुत प्रसंग से कुछ बाहर है, इसलिये इसे,हम यहीं छोड़ देते हैं। यहाँ हम केवल इतना ही कहना पर्याप्त समझते हैं कि यह हमारी भाषा है और इस समय सारे भारत की राष्ट्रभाषा हो रही है।