पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२८६

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प्रेममार्गी भक्ति शाखा प्रेमवर्णनों में अश्लील दृश्यों को भरसक यचाकर, प्रकृति के सुरम्य रूपों को चित्रित कर यहाँ के प्रेममार्गी कवियों ने अपने काव्यों को भारतीय जल-वायु के बहुत कुछ अनुकूल कर दिया है। सूफी सिद्धांत के अनुसार अंत में श्रात्मा परमात्मा में मिल जाता है। इसी लिये उनकी कथाओं का अंत या समाप्ति दुःखांत हुई है। प्रारंभ में तो यह बात बनी रही, पर श्रागे चलकर इस संप्रदाय के कचि यह बात भूल गए; अथवा भारतीय पद्धति का, जो आदर्शवादी थी और जिसके अनुसार दुःखांत नाटक तक नहीं बने, उन पर इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि उन्होंने नायक और नायिका को भोग-विलास और सुख- चैन में रखकर ही अपने ग्रंथ की समाप्ति की है। सूफी कवियों का प्रेम ईश्वरोन्मुख था। उन्होंने अपने प्रेमप्रबंधों में यद्यपि लौकिक कथा ही कही है परंतु यह लौकिक कथा उनकी हृदया- प्रस्तुत में अप्रस्तुत नुभूति के व्यक्त करने का साधन मात्र है। उस " कथा से उनका संबंध बहुत घनिष्ठ नहीं है, वहीं तक है जहाँ तक वह उनके ईश्वरोन्मुख प्रेम के अभिव्यंजन में समर्थ होती है। सूफियों का प्रेम ईश्वर के प्रति होता है। परंतु ईश्वर तो निरा- कार है, निर्गुण है, अतः अवर्णनीय है। हाँ, उसका श्राभांस देने के लिये लौकिक कथाओं की सहायता लेनी पड़ी है। पद्मावत की ही कथा को ले लीजिए। उसमें यद्यपि चित्तौड़ के अधिपति रतसेन और सिंहलद्वीप की राजकन्या पद्मावती की कथा कही गई है, परंतु जायसी ने एक स्थान पर स्पष्ट कर दिया है कि उनकी यह कथा तो रूपक मात्र है, वास्तव में घे उस ईश्वरीय प्रेम की अभिव्यक्ति कर रहे हैं जो प्रत्येक साधक के हृदय में उत्पन्न होती है और उसे ईश्वरप्राप्ति को और प्रवृत्त करती है। यही नहीं, जायसी ने तो अपने रूपक को और भी खोल दिया है और अपनी कथा के विविध प्रसंगों तथा पात्रों को ईश्वर-प्रेम के विविध अवयवों का व्यंजक बतलाया है। इस प्रकार उनकी पूरी कथा एक महान् अन्योक्ति ठहरती है। सभी प्रत्यक्ष वर्णन अप्रत्यक्ष की ओर संकेत करते हैं, कवि की दृष्टि से स्वतः उनका विशेष महत्त्व नहीं। यह ठीक है कि कवि की दृष्टि हीसमीक्षक कीभी दृष्टि नहीं होती,श्रतः साहित्य- समीक्षक सारे वर्णनों को प्रस्तुत न मानकर बीच बीच में अप्रस्तुत की ओर संकेत मात्र मानते हैं, परंतु संत सूफियों का ठीक श्राशय समझने में हम भूल नहीं कर सकते।. रतसेन और पद्मावती के लौकिक रूप . से उनका उतना संबंध नहीं था जितना अपने पारमार्थिक प्रेम से था। कथा-प्रसंगों में, बीच बीच में, प्रेमी के कप्ट नीर त्याग नादि के वर्णन.