पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२८३

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२८२ हिंदी साहित्य तक उनसे अलौकिक प्रेम की अभिन्यक्ति में सहायता मिलती थी अथवा घाधा नहीं पड़ती थी। यहाँ यह कह देना भी उचित होगा कि सूफी कवियों के अधिकांश पाख्यान हिंदू समाज से लिए गए हैं और हिंदू जीवन से पूरी सहानुभूति रखते हैं। यह उन कवियों के उदार हृदय और सामंजस्य बुद्धि का परिचायक है। कवीर आदि संतों की पानी अटपटी है। उसमें ब्रह्म की निरा. कार उपासना का उपदेश दिया गया है और वेदों पुराणों श्रादि की निंदा करके एक प्रकार के दंभरहित सरल सदाचारपूर्ण धर्म की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है। राम और रहीम को एक ठहराकर हिंदू तथा मुसलमान मतों का अद्भुत मेल मिलाया गया है। इसी प्रकार हिंसा और मांसमक्षण का खंडन कर नमाज और पूजा का विरोध करके इन संतों ने किस मार्ग का अनुसरण किया किसका नहीं, यह साधारण जनता की समझ में नहीं पा सकता था। फिर भी कवीर श्रादि का देश के साधारण जनसमुदाय पर जो महान् प्रभाव पड़ा, वह कहने सुनने की बात नहीं है। वे संत पढ़े लिखे न थे, उनकी भापा में साहि- त्यिकता न थी, उनके छंद ऊटपटांग थे तथापि उन्हें जनता ने स्वीकार किया और उनकी विशेष प्रसिद्धि हुई। इसके विपरीत सुफी कवियों के उदार अधिकतर शृंखलित और शास्त्रानुमोदित थे, उनकी भाषा भी अच्छी मॅजी हुई थी और छंद आदि का भी उन्हें शान था। इन कवियों की संख्या भी कम न थी। फिर भी यह स्वीकार करना पड़ता है कि देश में सूफी कवियों की न तो अधिक प्रसिद्धि ही हुई और न उनका अधिक प्रचार ही हुश्रा। इनमें से अनेक कवि तो नामावशेप ही थे और कठिनाई से उनके ग्रंथों का पता लगा है। संभवतः साहित्यिक समाज में भी इन कवियों का विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान कभी नहीं माना गया। इनकी कविताओं के उद्धरण न तो लक्षण ग्रंथों में मिलते हैं और न धार्मिक संग्रहों में ही उन्हें स्थान दिया गया है। संभवतः सूफियों की रहस्योन्मुख भावनाएँ इस देश की जलवायु के उतनी भी अनुकूल नहीं थीं जितनी कधीर नादि की अटपटी और अव्य- 'वस्थित चाणी थी। प्रेमाख्यानक सूफी फपियों की परंपरा हिंदी में कुतयन के समय से चली । कुतयन शेरशाह के पिता हुसैनशाह के आश्रित थे और सूफियो की परंपरा चिश्ती पंश के शेख चुरहान के शिष्य थे। इनके " प्रेमकाव्य का नाम मृगावती है जो इन्होंने सन् Eot हिजरी में लिखा था। चंद्रनगर के अधिपति गणपतिदेव के राज-