पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२६९

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२६८ हिंदी साहित्य कीर के निर्गुणवाद ने तुलसी और सूर के सगुणवाद के लिये मार्ग प्रशस्त किया और उत्तरीय भारत के भावी धर्ममय जीवन के लिये उसे बहुत कुछ संस्कृत और परिष्कृत कर दिया। - जिस समय निर्गुण संत कवियों का प्राविर्भाव हुआ था, वह समय ही भक्ति की लहर का था। उस लहर को बढ़ाने के प्रवल कारण प्रस्तुत थे। भारत में मुसलमानों के श्रा यसने से परिस्थिति में बहुत कुछ परिवर्तन हो गया था। हिंदू जनता को अपना नैराश्य दूर करने के लिये भक्ति का श्राश्रय ग्रहण करना आवश्यक था। इसके अतिरिक्त कुछ लोगों ने हिंदू और मुसलमान दोनों घिरोधी जातियों को एक करने की आवश्यकता का भी अनुभव किया। इस अनुभव के मूल में एक ऐसे सामान्य भक्तिमार्ग का विकास गर्भित था जिसमें परमात्मा की एकता के आधार पर मनुप्यों की एकता का प्रतिपादन हो सकता और जिसके परिणाम-स्वरूप भारतीय ब्रह्मवाद तथा मुसलमानी खुदावाद की स्थूल समानता स्थापित हो सकती। भारतीय अद्वैतवाद और मुसल- मानी एकेश्वरवाद के भेद की ओर ध्यान नहीं दिया गया और दोनों के विचित्र मिश्रण के रूप में निर्गुण भक्तिमार्ग चल पड़ा। रामानंद के यारह शिष्यों में से कुछ इस मार्ग के प्रवर्तन में प्रवृत्त हुए जिनमें से कबीर प्रमुख थे। शेप में सेना, पन्ना, भवानंद, पीपा और रैदास थे परंतु उनका उतना प्रभाव न पड़ा, जितना कबीर का। मुसलमानों के आगमन से हिंदू समाज पर एक और प्रभाव पड़ा। पददलित शूद्रों की दृष्टि का उन्मेप हो गया। उन्होंने देखा कि मुसलमानों में द्विजों और शूद्रों का भेद नहीं है। सहधर्मी होने के फारण वे सब एक है, उनके व्यवसाय ने उनमें कोई भेद नहीं डाला है। न उनमें कोई छोटा है और न कोई यड़ा। श्रतएव इन ठुकराए हुए शूद्रो में से कुछ ऐसे महात्मा निकले जिन्होंने मनुष्यों की एकता उद्घोपित करने का विचार किया। इस नवोत्थित भक्ति-तरंग में सम्मिलित होने के कारण हिंदू समाज में प्रचलित भेद-भाव के विरुद्ध आंदोलन होने लगा। रामानंदजी ने सबके लिये भक्ति का मार्ग खोल दिया। नामदेव दरजी, रैदास चमार, दादू धुनिया, कधीर जुलाहा श्रादि समाज की नीची श्रेणी के ही थे पर उनका नाम श्राज तक श्रादर से लिया जाता है। इस निर्गुण भक्ति ने वर्णभेद से उत्पन्न उच्चता और नीचता को ही मालिक नहीं, वर्ग-भेद से उत्पन्न उद्यता-नीचता को भी दर " करने का प्रयत किया। खियों का पद स्त्री होने के ही कारण नीचा न रह गया। पुरुषों के ही समान वे भी भक्ति की अधि-