पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२६४

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भक्तिकाल की ज्ञानाश्रयी शाखा २६३ उतना प्रचार नहीं हुआ जितना बंगाल आदि में हुआ। उनको कविता से बंगाल के वैष्णव-भक्ति-श्रांदोलन को बहुत कुछ सहायता पहुँची, पर हिंदी भापा-भापी प्रांतों में उसका अधिक प्रचार उस समय नहीं हुआ। विद्यापति की भाषा में मेथिली का पुट बहुत गहरा चढा हुया है। इससे कुछ लोग हिंदी कवियों में उन्हें गिनने में श्रागा पीछा करते हैं। दूसरे लोगों का यह कहना है कि जय वीरगाथा काल के राजस्थानी कवियों को हम हिंदी साहित्य के अंतर्गत मानते हैं, तब कोई कारण नहीं है कि विद्यापति की रचनाओं को भी हम हिंदी साहित्य में सम्मि- लित न करें। भावों और विचारों की दृष्टि से तो विद्यापति की रच. नाओं को हिंदी साहित्य के अंतर्गत मानने में संकोच नहीं होना चाहिए, • यद्यपि हिंदी भाषा के विकास का विवेचन करते समय मैथिली को उप- भापा मानने में संकोच हो सकता है। यह तो पूर्वी हिंदी का एक रूप है। बॅगला भाषा से उसका जितना मेल है उसकी अपेक्षा कहीं अधिक हिंदी से उसका मेल है। और इसी लिये विद्यापति की रचनाओं के लिये बॅगला साहित्य की अपेक्षा हिंदी साहित्य में कहीं अधिक उपयुक्त नीर न्यायसंगत स्थान है। विद्यापति के उपरांत हिंदी में दूसरे बड़े भक्त कवि महात्मा कवीरदास हुए जिनकी उपासना निर्गुण उपासना थी और जिनकी जाया प्रेरणा से हिंदी में ज्ञानाश्रयी भक्त कवियों की एक " शाखा चल पड़ी। कबीर, नानक, दाद, जग. जीवन, सुंदर आदि इस शाखा के प्रधान कवि हुए थे। ये सब संत और गहात्मा थे। इन्होंने पारमार्थिक सत्ता की एकता निरूपित करके हिंदुओं और मुसलमानों के द्वेप भाव की निंदा की और दोनों में एकता स्थापित करने का उद्योग किया। ये संत सभी जातियों के थे और उनके उपदेशों में भी जाति-पाति के भेद मिटाकर "हरि को भजे सो हरि को होई" के आधार पर मानव मात्र की एकता स्थापित करने की चेष्टा की गई। अध्यात्म पक्ष में तो इन संतों ने निर्गुण ब्रह्म को ही ग्रहण किया, पर उपासना के लिये निर्गुण में भी गुणों का आरोप करना पड़ा। तात्त्विक दृष्टि,से ऐसा करने में कोई हानि नहीं है। उपासना में निर्गुण की प्रतिष्ठा करके और वेदों, पुराणों तथा कुरान आदि की निंदा करके मानो हिंदू और मुसलमानों में एकता स्थापन का दोहरा प्रयत किया गया। इन संत कवियों ने लौकिक जीवन को भी अत्यंत सरल, निर्मल और स्वाभाविक बनाने के उपदेश दिए तया सदाचार श्रादि पर विशेष जोर डाला1- इस सवका फल यह हुआ कि एक सामान्य भक्ति-मार्ग