पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२०८

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ललित कलाओं की स्थिति २०७ यद्यपि राजपूत चित्र-शैली का श्राविर्भाव इस काल के पूर्व सोल- हवीं शताब्दी के अंतिम भाग में हो गया था, पर उसका ठीक ठीक _ विकास कुछ समय के उपरांत हुआ। डाक्टर उत्तर मध्य काल कमारस्वामी और श्रीयत अजित घोप के संग्रहों में कुछ राग रागिनियों के चित्र हैं जिनके,रचना-काल के संबंध में बड़ा मतभेद चला था। अंत में चे सत्रहवीं शताब्दी के प्रारंभिक भाग के लगभग बने माने गए हैं और उनमें चित्रकला के नवीन युग के बीज एवं प्राचीनता के चिह्न स्वीकृत किए गए हैं। राग रागिनियों के चित्र प्रय तक अविदित थे। पंद्रहवीं शताब्दी को संगीत पुस्तकों तथा सूर और तुलसी के पदों तक में रागों की इस प्रकार की कल्पना नहीं मिलती। तो भी ये राग-परिचार केवल कपोलकल्पना नहीं माने जा सकते, इनमें कुछ न कुछ तत्त्व अवश्य हैं। छः रागों के ध्यान तो निःसंदेह ऋतुओं के अनुसार हैं, और रागिनियों के ध्यान भी संभवतः उनके द्वारा उद्दीप्त भावों का अभिव्यंजन करते हैं। कहा जाता है कि उक्त रागमाला के चित्र राजपूताने अथवा धुंदेलखंड में बने थे। कुछ विद्वानों का कहना है कि ये चित्र मालवा की कलम के हैं क्योंकि उन दिनों वही एक संगीत- प्रधान केंद्र था, पर राजपुताने में भी राग-रागिनियों के चित्र दो ढाई सौ वर्ष पहले के बने मिलते हैं। जो कुछ हो, राजपूत शैली की राज- स्थानी शाखा का मुख्य विषय प्रारंभ से लेकर वर्तमान काल तक राग- माला ही रहा है। इस काल में बारहमासा के चित्रों तथा धार्मिक चित्रों को और भी ध्यान दिया गया। धार्मिक चित्रों में कृष्णलीला को ही प्रधानता दी गई। नायिका-भेद या साहित्यक विषयों के चित्र भी कुछ कुछ मिलते हैं। लाहौर म्यूजियम और जयपुर म्यूजियम में हम्मीर. हठ के चित्रों का तथा वृटिश म्यूजियम और भारत कलाभवन में चारह- मासे और नायिकाओं के वित्रों को अच्छा संग्रह है। इस शैली के दिनों में वास्तविकता की ओर उतना ध्यान नहीं दिया जाता था, जितना कल्पना की ओर रहता था। काशिराज के पुस्तकालय के रामचरितमानस, भारत-कला-भवन के अधूरे बालकांड और मधुमालती इसके उदाहरण है। धुंदेलखंडी शैली इसी राजस्थान शैली की परवर्ती शाखा थी। हम हिंदी साहित्य के उत्तर मध्य काल का श्रारंभ केशव की रचनाओं से पाने लगते हैं और चिंतामणि के समय तक उसके प्रत्यक्ष लक्षण देख पड़ते हैं। तदनुसार चित्रकला का उत्तर मध्य काल केशव की समकालीन बुंदेल-जागति से मानना उचित होगा। बुंदेलो ने अकवर और जहांगीर के काल में अत्यंत साधारण स्थिति से उठकर जो प्रमुखता प्राप्त की