पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१९१

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१६२ हिंदी साहित्य विषय है, पर यहाँ हमारा श्राशय केवल उसके माहित्यिक अंग से ही है। वास्तु, मूर्ति तथा चित्रकलाओं में मूर्त आधार प्रत्यक्ष रहता है, परंतु संगीत में उसका स्वरूप नाद के रूप में ही व्यक्त होता है; और काव्य. फला में तो मूर्त आधार प्रायः होता ही नहीं । जिस कला में मूर्त श्राधार जितना ही कम होगा, यह उतनी ही उच्च कोटि की समझी जायगी। इसी भाव के अनुसार हम काव्यकला को सबसे ऊँचा स्थान देते हैं, क्योंकि उसमें मूर्त श्राधार का एक प्रकार से पूर्ण अभाव रहता है। कुछ विद्वानों का मत है कि संगीत कला का स्थान सबसे ऊँचा है, क्योंकि काव्य में तो शब्दों का आधार भी है पर संगीत में केवल नाद है। यह विषय विवाद- ग्रस्त है। हमारे प्रयोजन के लिये तो यह मान लेना श्रावश्यक है कि संगीत और काव्य दोनों उच्चतम कलाएँ हैं और दोनों का परस्पर बड़ा घनिष्ठ संबंध है। उसी के अनुसार हम वास्तुकला को सबसे नीचा स्थान देते है, क्योंकि मूर्त आधार की विशेषता के बिना उसका अस्तित्व ही संभव नहीं। सच पूछिप तो इस आधार के सुचारु रूप से सजाने में ही वास्तुकला को ललित कला की पदवी प्राप्त होती है। इसके अनंतर दूसरा स्थान मूर्तिकला का है। इसका भी नाधार मूर्त ही होता है, परंतु मूर्तिकार किसी प्रस्तर-खंड या धातु-खंड को ऐसा रूप दे देता है जो भूत वर्ग में उस आधार से सर्वथा भिन्न होता है। वह उस प्रस्तर-खंड या धातु-खंड को निर्जीव से सजीव बनाने का उपक्रम करता है और उसके प्रयास से उसकी रचना में बहुत कुछ सजीवता की अभिव्यक्ति हो जाती है। मूर्तिकला के अनंतर तीसरा स्थान चित्र- फला का है। उसका भी आधार मूर्त ही होता है। प्रत्येक मूर्त अर्थात् साकार पदार्थ में लंबाई, चौड़ाई और मोटाई होती है। वास्तुकार और मूर्तिकार को अपना कौशल दिखाने के लिये भूर्त श्राधार के पूर्वोक्त तीनों गुणों का प्राश्रय लेना पड़ता है, परंतु चित्रकार को अपने चित्रपट के लिये लंबाई और चौड़ाई का ही प्राधार लेना पड़ता है, मोटाई तो उसके श्राधार में नाममात्र को ही होती है, और यह भी एकाकार; चित्र- कार उसे घटा वढ़ा नहीं सकता। तात्पर्य यह कि ज्यों ज्यों हम ललित कलाओं में उत्तरोत्तर उत्तमता की ओर बढ़ते हैं, त्यों त्यों मूर्त श्राधार का परित्याग होता जाता है। चिनकार अपने चित्रपट पर किसी मूर्त पदार्थ का यह प्रतिविंय अंकित कर देता है, जिसमें विघ के समान ही रूप रंग श्रादि देख पड़ते हैं। अव संगीत के विषय में विचार कीजिए। नाद अर्थात् स्वरों का प्रारोह या अवरोह ( उतार चढ़ाव) ही संगीत का श्राधार होता