पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१८२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१५३ भिन्न भिन्न परिस्थितियां कि उस समय तक इस देश में आकर बसे हुए मुसलमानों का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा था। यद्यपि मुसलमान शास्त्राधिकारी लोग हिंदुओं से प्रायः द्वेप ही करते रहे, परंतु साधारण जनता में पारस्परिक सहानु- भूति के चिह्न दिखाई देने लगे थे। हिंदू मुसलमानों में परस्पर भावों और विचारों का आदान प्रदान प्रारंभ हो गया था। मुसलमानों के एकेश्वरवाद और उदार भ्रातृभाव से हिंदू बहुत कुछ प्रभावित हुए और उपासना में अंत्यजों को भी स्थान मिला। अनेक देवी देवताओं की ओर से भी बहुत कुछ ध्यान हटा। साथ ही इन्हीं रामानंद के प्रभाव के कारण तथा भक्तिमार्ग के प्राचार्यों की अनुदारता के कारण अस्पृश्य जातियों को जो परमेश्वर की आराधना से वंचित किया गया, उसका प्रतिफल जो कुछ होना चाहिए था, वही हुना। साधुनों और संतों का एक नया ही दल देश में दिखाई पडा जिनकी वाणी में सरलता और भावों में उदारता की अत्यधिक माना थी। इन्होंने अंत्यज जातियों में अपूर्व श्राशा और उत्साह की तरंगे लहराई। हिंदू और मुसलमान दोनों ही उनके उपदेशों से प्रभावान्चित हुए, क्योंकि उनके उपदेश मनुष्य- प्रकृति की करुण और निफपट वृत्तियों पर अवलंवित थे। साथ ही उपासना के लिये इन संतों ने निर्गुण ब्रह्म का अाधार लिया था जिसके कारण जातीय, सांस्कृतिक अथवा धार्मिक संघर्प या मतमेद की संभा- वना भी बहुत कम रह गई थी। इन संतों ने योग श्रादि की क्रियाओं फा भी अपने संप्रदाय में प्रचार किया परंतु सामान्य जनता ने इनकी सरल शिक्षा और उदारवृत्ति को ही अधिक अंशों में ग्रहण किया। उत्तर भारत में इसका श्रारम रामानंदजी के शिष्य फवीरदास से हुश्रा और उनका संप्रदाय इतना वढा कि उसका क्रम अब तक चला चलता है। इस संप्रदाय ने देशभापा को अपने उपदेशों के प्रचार का माध्यम घनाया, और इस कारण उन्हें बहुत कुछ सफलता भी प्राप्त हुई। इसके अतिरिक्त भारतीय अद्वैतवाद और सूफी प्रेमवाद के सम्मिश्रण से हिंदी में जायसी, फुतवन थादि रहस्यवादी कवियों की परंपरा चली। उत्तर मध्य काल जिस समय उपासना के बहुत से संप्रदाय यन रहे थे और हिंदुओं नथा मुसलमानों का पारस्परिक हेल-मेल घट रहा था, उस समय मुगलों नीतिक अव का मुख समृद्धिपूर्ण साम्राज्य था। परंतु थोड़े " समय के बाद अवस्था में परिवर्तन हुश्रा। संपत् १७१६ में औरंगजेच मुगल साम्राज्य का उत्तराधिकारी दुधा। उसने राज्याधिकार पाते ही नृशंस तथा धर्माध शासक की नीति घोपित कर