पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१४४

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१४४ हिंदी भाषा लेता है, चाहे जिस अर्थ को छोड़ देता है। इसी संबंध-शक्ति के घटने. चढ़ने से उसके अर्थ की हाल वृद्धि होती है। इसी संबंध के भाव अथवा अमाव से उसका जन्म अथवा मरण होता है। अर्थात् संबंध ही शब्द की शक्ति है, संबंध ही शब्द का प्राण है। इसो से शब्द तत्त्व के जानकारों ने कहा है 'शब्दार्थसंबंधः शक्तिः-शन्द और अर्थ के संबंध का नाम शक्ति है। जिस प्रकार शब्द तीन प्रकार के होते हैं उसी प्रकार शक्ति और अर्थ के भी तीन तीन भेद होते हैं। (१) वाचक शब्द की शक्ति श्रमिधा फहलाती है और उसके अर्थ को अमिधेयार्थ, सामान्य अर्थ, वाच्य अर्थ शक्ति और अर्थ अथवा र अथवा मुरय अर्थ कहते हैं । (२) लक्षक शब्द की शक्ति लक्षणा कहलाती है और उसके अर्थ को लक्ष्यार्थ, औपचारिक अथवा थालंकारिक अर्थ कहते हैं । (३) व्यंजन शब्द की शक्ति व्यंजना कहलाती है और उसके अर्थ को व्यंग्य अथवा ध्वनि कहते हैं। इस प्रकार शब्द, शब्दशक्ति और शब्दार्थ को समझ लेने पर एक बात पहले ध्यान में रखकर तब आगे बढ़ना चाहिए। यह यह है कि साहित्यिकों और भापा-वैज्ञानिकों की अध्ययन-प्रणाली में थोड़ा अंतर होता है। साहित्यिक लक्ष्य और व्यंग्य श्रों की ओर विशेष ध्यान देता है और भापा-वैज्ञानिक अभिधा की ओर। भापा-वैज्ञानिक प्रयोग की व्याख्या नहीं करता और न उसके रस की मीमांसा करता है। वह तो कोप में गृहीत अर्थों को लेकर अपना ऐतिहासिक विवेचन शुरू कर देता है। आगे चलकर जय श्रावश्यकता पड़ती है तब वह रुक जाता है और इस पर विचार करता है कि अमुक शब्द का अमुफ अर्थ पहले किन (लक्षणा व्यंजना आदि) शक्तियों की कृपा से विकसित हुधा है। इस प्रकार उसे प्रारंभ में और अपने नित्य के अध्ययन में कोप के अभिधेयार्थ से ही काम पड़ता है। यद्यपि कोप में लाक्षणिक और व्यंग्य अर्थ भी दिए रहते हैं पर शास्त्र और व्यवहार दोनों के विचार सेलदार और व्यंजना का प्रभाव सो प्रयोग में ही स्पष्ट होता है. कोप में नहीं। सच पूछा जाय तो जो अर्थ कोप में लिख जाता है उसमें केवल अमिधा शक्ति ही रह जाती है। यह वात विचार करने पर सहज ही समझ में आ जाती है। अतः हम लक्षणा, व्यंजना की अधिक चर्चा यहाँ न करके अभिधा से ही प्रारंभ करते हैं। कुछ लोग अभिधा को ही शब्द की वास्तविक शक्ति समझते हैं। इस अभिधा शक्ति के तीन सामान्य भेद होते हैं। रूढि,योग और योग- रूढि। इसी शक्ति-भेद के अनुसार शब्द और अर्थ भी रूढ़, यौगिक अथवा