पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/११४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

११४ हिंदी भाषा . (४२) व-उच्चारण फ के समान होता है। परंतु यह घोष है। अर्थात् व दंतोप्ट्य घोष घर्प-ध्वनि है। यह प्राचीन ध्वनि है और विदेशी शब्दों में भी पाई जाती है। उदा०-वन, सुवन, यादव । (४३) य (अथवा इ)-यह तालव्य, घोप, अर्द्धस्वर है। इसके उच्चारण में जिहोपान कठोर तालु की ओर उठता है पर स्पष्ट घर्षण नहीं नाम होता। जिह्वा का स्थान भी व्यंजन च और स्वर के बीच में रहता है इसी से इसे अंतस्थ अर्थात् व्यंजन और स्वर के बीच की ध्वनि मानते हैं। वास्तव में व्यंजन और स्वर के बीच की ध्वनियाँ हैं घर्ष व्यंजन । जब किसी घर्ष व्यंजन में घर्प स्पष्ट नहीं होता तब वह स्वरवत् हो जाता है। ऐसे ही वों को अर्धस्वर अथवा अंतस्थ कहते हैं। य इसी प्रकार का अधस्वर है। उदा०--कन्या, प्यास, या, यम, धाय, श्राए। य का उच्चारण एथ सा होता है और कुछ कठिन होता है, इसी से हिंदी बोलियों में य के स्थान में ज हो जाता है। जैसे-यमुना-- जमुना, यम-जम। (४४) च-ओश्र से बहुत कुछ मिलता है। यह घर्प च का हो श्रय रूप है। यह ध्वनि प्राचीन है। संस्कृत तत्सम और हिंदी तद्भव दोनों प्रकार के शब्दों में पाई जाती है। - उदा०-पवार, स्वाद, स्वर, अध्वर्यु आदि। । प्रय हम नीचे वैदिक, परवर्ती संस्कृत, पाली, प्राकृत, अपनश, पुरानी हिंदी और हिंदी के ध्वनि-समूह का संक्षिप्त परिचय देंगे जिससे हिंदी की ध्वनियों का एक इतिहास प्रस्तुत हो जाय। ___हमारी संस्थत भापा उस भारोपीय परिवार को कन्या है जिसका विद्वानों द्वारा सुंदर अध्ययन हुया है। इस परिवार की अनेक भाषाएँ आज भी जीवित है, अनेक के साहित्य-चिह्न मिलते हैं और इन्हीं के आधार पर इस परिवार की आदिमाता अर्थात् भारोपीय मातृभापा की भी रूप-रेखा खींचने का यत्न किया गया है। श्रतः हिंदी की ध्वनियों का इतिहास जानने के लिये उस भारोपीय मातृमापा की ध्वनियों से भी संक्षिप्त परिचय कर लेना अच्छा होता है। यद्यपि आदिमापा की पनियों के विषय में मतभेद है तथापि हम अधिक विद्वानों द्वारा गृहीत सिद्धांतों को मानकर ही आगे बढ़ेंगे। विशेष विवाद यहाँ उपयोगी नहीं प्रतीत होता। उस मूल भारोपीय भाषा में स्वर और व्यंजन दोनों