प्रथम संस्करण की भूमिका . मेरी बहुत दिनों से इच्छा थी कि हिंदी भाषा और साहित्य का एक छोटा सा इतिहास लिखू। हिंदी भाषा का इतिहास तो, कई वर्ष हुए, लिख लिया गया था, पर साहित्य का इतिहास अब तक न लिखा जा सका था। हिंदी भाषा का इतिहास पहले पहल पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी ने लिखा था, पर वह केवल डाक्टर ग्रियर्सन के अनुसंधानों के आधार पर लिखा गया था। उस समय द्विवेदीजी ने अपने स्वतंत्र विचारों, अनुभवों और अनुसंधानों से विशेष काम नहीं लिया था। इससे जैसा चाहिए, वैसा वह न हो सका था। इसके अनंतर पंडित रामनरेश त्रिपाठी ने एक इतिहास लिखा था पर उसमें भाषा और साहित्य का ऐसा सम्मिश्रण हुआ कि दोनों के इतिहास को अलग अलग करना बहुत कठिन था। मेरी इस वर्तमान पुस्तक में हिंदी भापा के इतिहास का जो अंश दिया गया है वह पहले पहल "भाषा- विज्ञान" नामक पुस्तक के अंतिम अध्याय के रूप में तथा साथ ही अलग पुस्तकाकार प्रकाशित हुआ था। उसके अनंतर वह परिवर्धित और संशोधित होकर हिंदी शब्दसागर की प्रस्तावना के प्रथम अंश के रूप में प्रकाशित हुआ। अंब यह आवश्यक परिवर्तनों तथा संशोधनों के साथ स्वतंत्र रूप से, इस पुस्तक के प्रथम अंश की भाँति, प्रकाशित किया जाता है। इस इतिहास के लिखने में मुझे कहाँ तक सफलता प्राप्त हुई है, यह मेरे कहने की बात नहीं है। यह तो विद्वानों के विचार और सम्मति के आश्रित है। मैं इतना ही कहना चाहता हूँ कि यद्यपि भाषा और साहित्य का बड़ा घनिष्ठ संबंध है और दोनों का अलग अलग विवेचन करना कठिन है, फिर भी जहाँ बक मुझसे हो सका है, मैंने दोनों को अलग अलग रखकर उनका विवेचन किया है। हिंदी साहित्य का इतिहास पहले पहल शिवसिंह सेंगर ने लिखा था। उस समय न इतनी सामग्री हो उपलब्ध थी और न विवेचन का
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