(८) प्रकृति-सौंदर्य
हरिणचरणतुण्योपांताः सशाद्वलनिर्झराः,
कुसुमकलितैर्विष्वग्वातैस्तरंगितपादपाः।
विविधविहगश्रेणीचित्रस्वनप्रतिनादिता
मनसि न मुदं दध्युः केषां शिवा वनभूमयः॥
-सुभाषित
भावार्थ-जहाँ हरी हरी दूब का गलीचा सा बिछा है, जिस पर हिरनों के खुरों के चिह्न चिह्नित हैं, निकट ही सुंदर झरने बह रहे हैं, कमनीय कुसुमों के मधुर सुगंध से सुगंधमय पवन बह रही है और तरुवर हिल रहे हैं, उन पर तरह तरह के बिहंगम अपनी तरह तरह की मंजुल ध्वनि से संपूर्ण प्रदेश को प्रतिनादित कर रहे हैं, ऐसी परम रमणीय वनस्थली किसके मन को आनंदित न करेगी?
प्रकृति की सुषमा सचमुच सुंदर है, परंतु उसे समझने की शक्ति थोड़े ही लोगों में होती है।
प्रचंड ऊर्मिमय गंभीरघोषी महासागर का प्रथम दर्शन करने, निर्जन और घोर अरण्य में-जहाँ चिड़ियाँ पंख नहीं मारतीं-प्रथम ही प्रवास करने, पृथ्वी के ऊँचे पहाड़ों की चोटियों के स्फोट के कारण महाभयंकर ज्वालामुखी के डरावने मुख से पृथ्वी के पेट से बह निकले हुए पत्थर, मिट्टी, धातु