पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/९०

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लच्छे में सनी हुई। चार से अधिक की बातचीत तो केवल रामरमौवल कहलावेगी। उसे हम संलाप नहीं कह सकते। इस बातचीत के अनेक भेद हैं । दो बुड्ढों की बातचीत प्रायः जमाने की शिकायत पर हुआ करती है बाबा आदम के समय का ऐसा दास्तान शुरू करते हैं जिनमें चार सच तो दस झूठ। एक बार उनकी बातचीत का घोड़ा छूट जाना चाहिए पहरों बीत जाने पर भी अंत न होगा। प्रायः अँगरेजी राज्य, परदेश और पुराने समय की बुरी से बुरी रीति-नीति का अनु- मोदन और इस समय के सब भाँति लायक नौजवानों की निंदा उनकी बातचीत का मुख्य प्रकरण होगा। पढ़े लिखे हुए तो शेक्स- पियर, मिलटन, मिल और स्पेंसर उनकी जीभ के आगे नाचा करेंगे। अपनी लियाकत के नशे में चूर चूर 'हमचुनी दीगरे- नेस्त'। अक्खड़ कुश्तीबाज हुए तो अपनी पहलवानी और अपने अक्खड़पन की चर्चा छेड़ेंगे। अशिकतन हुए तो अपनी अपनी प्रेमपात्री की प्रशंसा तथा अशिकतन बनने की हिमाकत की डोंग मारेंगे। दो ज्ञातयौवना हम-सहेलियों की बातचीत का कुछ जायका ही निराला है। इसका समुद्र मानों उमड़ा चला आ रहा । इसका पूरा स्वाद उन्हीं से पूछना चाहिए जिन्हें ऐसों की रससनी बातें सुनने को कभी भाग्य लड़ा है।

"प्रजल्पन्मत्पदे लग्नः कान्तः किं ? नहि नूपुरः।"

"वदन्ती जारवृत्तान्तं पत्यौ धूर्ता सखोधिया।

पतिं बुवा सखि ततः प्रबुद्धा स्मीत्यपूरयत् ॥"