पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/८

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कोने में खड़ा हो इस कौतुकमय लीला को देखने के लिये प्रस्तुत हो गया। यह देखकर मुझे एक प्रकार की प्रसन्नता होती थी कि सारे मनुष्य क्रमशः आ आकर अपनी अपनी विपचि की गठरी मैदान में फेंक रहे हैं। यह ढेर थोड़ी ही देर में इतना बड़ा हो गया कि आकाश को छता दिखाई पड़ने लगा। इस भीड़भाड़ में एक दुबली पतली चंचला स्त्रो बड़ा उत्साह दिखा रही थी। ढीला ढाला वस्त्र पहने हाथ में भ्यागनीकाइंग ग्लास लिए वह इधर उधर घूमती दिखाई दे रही थी। में प्रेत के मनःकल्पित चित्र बेल बूटों में कढ़े थे।

जब उसका वस्त्र वायु में इधर उधर उड़ता तब बहुत सी विचित्र ढंग की हास्यजनक एवं भयानक कलित मूर्तियाँ उसमें दिखाई पड़तों। इसकी चेष्टा से उन्माद तथा विह्वलता के कुछ चिह्न झलक रहे थे। लोग इसे भावना कहकर पुका- रते थे। मैंने देखा कि यह चंचला प्रत्येक मनुष्य को अपने साथ ढेर के पास ले जाती, बड़ी उदारता से उनकी गठरी कंधे पर उठवा देती और अंत में उसके फेंकने में भी पूरी सहायता देती है। मेरा हृदय यह दृश्य देख, कि सभी मनुष्य अपने विपद्भार के नीचे दब रहे हैं, भर आया। आपत्तियों का यह पर्वत देखके मेरा चित्त और भी चलायमान हो रहा था।

इस स्त्री के अतिरिक्त और कई एक मनुष्य इस भीड़ में मुझे विचित्र दिखाई पड़े। एक को देखा कि वह चीथड़ों की