सदाचार, सद्व्यवहार, बंधुभाव, सुशोलता और सुजाता का
संचार उनके हृदय में हो गया। मुद्दानी गद्दा के एक वृद्ध
महाराज निस्संतान थे; उनके जीवनकाल की संध्या होने ही
को थी कि इतने में काशी के प्रसिद्ध गहिरवार-वंश-भूषण राजा
कर्य किसी कारण अपने पूर्वजों की राजगद्दो काशी छोड़
मुहानी आए। निस्संतान मुद्दानी राज्याधीश ने बड़े प्यार
से उनका सत्कार किया और उनको अपना पाहुना बनाया।
कुछ कालोपरांत दोनों में घनिष्ट प्रेम हो गया और मुरौनी-राज
महाराज कर्ण के गुणों से ऐसे मोहित हो गए कि अपना समस्त
राज आगंतुक को सौंप आप सुरपुर सिधारे। यही राजा कर्य
बुंदेलवंश के मूल पुरुष हैं। राजा कर्ण और उनके पुत्र अर्जुन-
पाल मुहानी में ही राज करते रहे और अपने राज्य का विस्तार
करते गए; परंतु अर्जुनपालजी के पुत्र राजा सहनपाल ने प्रबल
खंगार जाति को परास्त कर और उनकी राजधानी गढ़ कुंडार
को विजय कर मुहानी से राजधानी हटा गढ़ कूडार को अपनी
राजधानी बनाया। राजा सहनपाल, राजा सहजइंद्र, राजा
नौनिध, राजा पृथु, राजा सूर, राजा रामचंद्र, राजा मे देनीमल,
राजा अर्जुन, राजा राय अन्प, राजा मलखान, राजा प्रतापरुद्र
तक यहाँ राज्य करते रहे, परंतु महाराजा रणरुद्र ने गह कूडार
से राजधानी हटा एक सिद्वजी के आज्ञानुकूल वेत्रवती के तट
पर ओड़छा बपाया। यही ओड़छा नमार आज हमारा
आलोच्य विषय है।
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