को भुक्ति-मुक्तिदाता मान रहे हैं, और एक वे लोग हैं जिनकी युक्तियों का बल केवल एक इसी बात में लग रहा है कि "रामायण में जो चरित्र वर्णित हैं वे सचमुच किसी व्यक्ति के नहीं हैं किंतु केवल किसी घटना और अवस्थाविशेष का रूपक बाँधके लिख दिए गए हैं। निरंकुशता और धृष्टता आज- कल ऐसी बढ़ी है कि निरर्गलता से ऐसी मिथ्या बातों का प्रचार किया जाता है। इस भ्रांत मत का प्रचार करनेवाले वेबर साहब यदि यहाँ होते तो हम उन्हें दिखाते कि जिसका वे अपनी विषदग्धा लेखनी से जर्मन में वध कर रहे हैं, वह भारतवर्ष में व्यापक और अमर हो रहा है। यहाँ हम अपनी ओर से कुछ न कहकर हिंदी के प्रातःस्मरणीय सुलेखक पंडित प्रतापनारायण मिश्र के लेख को उद्धृत करते हैं-
अहा यह दोनों अक्षर भी हमारे साथ कैसा सार्व- भौमिक संबंध रखते हैं, कि जिसका वर्णन करने की सामर्थ्य ही किसी को नहीं है। जो रमण करता हो अथवा जिसमें रमण किया जाय उसे राम कहते हैं, ये दोनों अर्थ राम नाम में पाए जाते हैं। हमारे भारतवर्ष में सदा सर्वदा रामजी रमण करते हैं और भारत राम में रमण करता है। इस बात का प्रमाण कहाँ ढूँढ़ने नहीं जाना, आकाश में रामधनुष ( इंद्रधनुष ), धरती पर रामगढ़, रामपुर, रामनगर, रामगंज, रामरज, राम- गंगा, रामगिरि ( दक्षिण में ); खाद्य पदार्थो' में रामदाना, रामकीला ( सीताफल ), रामतरोई, रामचक्र; चिड़ियों में राम-