मैंने देखा कि एक ब्राह्मण देवता चूल्हा फूंकते फूंकते थक गए ।
जब आग नहीं जली तब उस पर कोप करके चूल्हे में पानी
डाल किनारे हो गए। इस प्रकार का क्रोध असंस्कृत है।
यात्रियों ने बहुत से ऐसे जंगलियों का हाल लिखा है जो रास्ते
में पत्थर की ठोकर लगने पर बिना उसको चूर चूर किए आगे
नहीं बढ़ते । इस प्रकार का क्रोध अपने दूसरे भाइयों के स्थान
अधिक अभ्यास के कारण यदि कोई
मनोवेग अधिक प्रबल पड़ गया तो वह अंतःकरण में अव्यवस्था
उत्पन्न कर मनुष्य को फिर बचपन से मिलती जुलती अवस्था
में ले जाकर पटक देता है
जिससे एक बार दुःख पहुँचा, पर उसके दोहराए जाने
की संभावना कुछ भी नहीं है उसको जो कष्ट पहुँचाया जाता
है वह प्रतिकार कहलाता है। एक दूसरे से अपरिचित दो
आदमी रेल पर चले जाते हैं। इनमें से एक को आगे ही के
स्टेशन पर उतरना है । स्टेशन तक पहुँचते पहुँचते बात ही
बात में एक ने दूसरे को एक तमाचा जड़ दिया और उतर
की तैयारी करने लगा। अब दूसरा मनुष्य भी यदि उतरते
उतरते उसको एक तमाचा लगा दे तो यह उसका प्रतिकार
वा बदला कहा जायगा क्योंकि उसे फिर उसी व्यक्ति से तमाचे
खाने की संभावना का कुछ भी निश्चय नहीं था। जहाँ
और दुःख पहुँचने की कुछ भी संभावना होगी वहाँ शुद्ध
प्रतिकार नहीं होगा। हमारा पड़ोसी कई दिनों नित्य आकर