पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/४८

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घट के अंतर्यामी को क्योंकर फुसलावे। जब मनुष्य का मन ही पाप से भरा हुआ है तो फिर उससे पुण्यकर्म कोई कहाँ से बन आवे। पहले आप उस स्वप्न को सुनिए जो मैंने रात को देखा है तब फिर पीछे वह उपाय बतलाइए जिससे पापी मनुष्य ईश्वर के कोप से छुटकारा पाता है।"

निदान राजा ने जो कुछ स्वप्न में रात को देखा था सब ज्यों का त्यों उस पंडित को कह सुनाया। पंडितजी तो सुनते ही अवाक हो गए, उन्होंने सिर झुका लिया। राजा ने निराश होकर चाहा कि तुषानल में जल मरे पर एक पर- देसी आदमी सा जो उन पंडितों के साथ बिना बुलाए घुस आया था सोचता विचारता उठकर खड़ा हुआ और धीरे से यो निवेदन करने लगा "महाराज, हम लोगों का कर्ता ऐसा दीनबंधु कृपासिंधु है कि अपने मिलने की राह आप ही बतला देता है, आप निराश न हूजिए पर उस राह को ढूँढ़िए । आप इन पंडितों के कहने में न आइए पर उसी से उस राह पाने की सच्चे जी से मदद माँगिए ।" हे पाठक जनो ! क्या तुम भी भोज की तरह ढूँढ़ते हो और भगवान् से उसके मिलने की प्रार्थना करते हो ? भगवान् तुम्हें शीघ्र ऐसी बुद्धि दे और अपनी राह पर चलावे, यही हमारे अन्तःकरण का आशीर्वाद है।

जिन ढूँढा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ ।

--राजा शिवप्रसाद
 

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