गरजा। मंदिर की दीवारें चारों ओर से अड़गड़ाकर गिर
पड़ी, मानों उस पापी राजा को दबा ही लेना चाहती थीं।
उस अहंकार की मूति पर एक ऐसी बिजली गिरी कि वह
धरती पर औंधे मुँह आ पड़ी। 'त्राहि माम् , त्राहि माम् ,
मैं डूबा,'कहके भोज जो चिल्लाया तो आँख उसकी खुल गई
और सपना सपना हो गया।
इस असें में रात बीतकर आसमान के किनारों पर लाली
दौड़ आई थी, चिड़ियाँ चहचहा रही थीं, एक अोर से शीतल
मंद सुगंध पवन चली आती थो, दूसरी ओर से बीन और
मृदंग की ध्वनि । बंदीगन राजा का यश गाने लगे, हर्कारे हर
तरफ काम को दौड़े, कमल खिले, कुमुद कुम्हलाए।राजा
पलँग से उठा पर जी भारी, माथा थामे हुए, न हवा अच्छी
लगती थी, न गाने बजाने की कुछ सुध बुध थी। उठते ही
पहले उसने यह हुक्म दिया कि "इस नगर में जो अच्छे से
अच्छे पंडित हो जल्द उनको मेरे पास लाओ। मैंने एक सपना
देखा है कि जिसके आगे अब यह सारा खटराग सपना मालूम
होता है। उस सपने के स्मरण ही से मेरे रोंगटे खड़े हुए जाते
है । राजा मुख से हुक्म निकलने की देर थी चोबदारों ने
तीन पंडितों को जो उस समय वसिष्ठ, याज्ञवल्क्य और बृह-
स्पति के समान प्रख्यात थे, बात की बात में राजा के सामने
ला खड़ा किया। राजा का मुँह पीला पड़ गया था, माथे पर
पसीना हो आया था। उसने पूछा कि “वह कौन सा उपाय