भजन कीर्तन होने लगा। चाँद सिर पर चढ़ पाया। घड़ि- याली ने निवेदन किया कि "महाराज ! आधी रात के निकट है।” राजा की आँखों में नींद आ रही थी; व्यास कथा कहते थे पर राजा को ऊँघ आती थी वह उठकर रनवास में गया।
जड़ाऊ पलँग और फूलों की सेज पर सोया । रानियाँ पैर दाबने लगीं। राजा की प्रॉख झप गई तो स्वप्न में क्या देखता है कि वह बड़ा संगमर्मर का मंदिर बनकर बिलकुल तैयार हो गया, जहाँ कहीं उस पर नक्काशी का काम किया है वहाँ उसने बारीकी और सफाई में हाथीदांत को भी मात कर दिया है, जहाँ कहीं पञ्चीकारी का हुनर दिखलाया है वहा जवाहिरों को पत्थरों में जड़कर तसवीर का नमूना बना दिया है। कहीं लालों के गुल्लालों पर नीलम की बुलबुलें बैठी हैं और प्रोस की जगह हीरों के लोलक लटकाए हैं, कहीं पुखराजों की डंडियों से पन्ने के पत्ते निकालकर मोतियों के भुट्टे लगाए हैं। सोने की चाबों पर शामियाने और उनके नीचे बिल्लौर के हौजों में गुलाब और केवड़े के फुहार छूट रहे हैं। मनों धूप जल रहा है, सैकड़ों कपूर के दीपक बल रहे हैं। राजा देखते ही मारे घमंड के फूलकर मशक बन गया कभी नीचे कभी ऊपर, कभी दाहने कभी बाएँ निगाह करता और मन में सोचता कि अब इतने पर भी मुझे क्या कोई स्वर्ग में घुसने से रोकेगा या पवित्र पुण्यात्मा न कहेगा ? मुझे अपने कर्मो का भरोसा है, दूसरे किसी से क्या काम पड़ेगा।