पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/२१

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के लिये बहुत है।यह बात नहीं है कि हम जिन जिन मनुष्यों

से मिलते हैं वे सब के सभी स्वभावतः दुष्ट होते हैं या जान- बूझकर हमें कुमार्ग में लगानेवाले होते हैं कितु बात यह है कि वे लोग इस बात पर ध्यान नहीं देते कि हम दूसरों से क्या बोलते हैं, क्या नहीं बोलते । स्वयं अपने अंत करण की ओर ध्यान न देकर हमें वे योग्य शिक्षा नहीं देते । अपनी बोलचाल में लड़कपन की बातें और गप शप किया करते हैं। वे यह समझने का प्रयत्न ही नहीं करते कि यदि वे थोड़ा सा परिश्रम भी करें तो उनकी बातचीत थोथी न होकर बोधजनक और आनंदजनक हो सकती है, नीरस और निष्फल न होगी।

हर एक मनुष्य से उसके योग्यतानुसार कुछ न कुछ शिक्षा प्राप्त होती ही है, ऐसी शिक्षा प्राप्त कर लेने की इच्छा भर चाहिए। ऐसे सजनों ने चाहे प्रत्यक्ष रूप में हमें कुछ न सिखाया हो तथापि वे अन्य रूप में हमें कुछ न कुछ जताते ही हैं, और स्नेह-भाव के साथ हमारी सहायता करते ही हैं अगर उन्होंने इनमें से कुछ भी न किया तो उनका समागम केवल समय खाना ही है। ऐसे लोगों की मित्रता तो क्या, उनसे जान पहचान भी न हो तो अच्छा है।

अपने मित्रों और संगी साथियों का चुनाव जितनी बुद्धि- मानी और दूरदर्शिता के साथ हम करेंगे उतनी ही हमारी जीवन-यात्रा सुखमय और सदाचारपूर्ण होगी। अगर हम दुर्जनों का संग करेंगे तो वे हमें खींचकर अपनी नीचता तक