पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/१९

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धन,अधिकार और सब सुखों के साधन प्राप्त होने से हमारा जो गौरव है उसके द्वारा हम घोड़े, नौकर, चाकर, कीमती वन इत्यादि खरीद सकते हैं, परंतु इस जीवन में अत्यंत मूल्य- वान् और हितकारी मित्र रूपी वस्तु का संग्रह नहीं करते, यह कितनी नासमझी की बात है ? अगर एक पशु मोल लेना हो तो हम बड़ी सावधानी के साथ उसकी प्रवृत्ति, उसकी पुष्टता और स्वभाव की परीक्षा करते हैं परंतु जिस मित्र के समागम से हमारी जीवन-यात्रा के कुछ न कुछ भले या बुरे होने की संभावना अवश्य रहती है उसका चुनाव केवल संयोग-वश ही हम कर लेते हैं

"जिस समय हमें मनुष्य की आवश्यकता होती है उस समय को छोड़ अन्य समय में दूसरे का समीप होना हमें पसंद नहीं होता" यह बात सच है, क्योंकि सर्वदा दूसरों की संगति का मुहताज रहना अज्ञान की अवस्था का दर्शक है। जिन विचारशून्य लोगों को संतोषपूर्वक एकांत-वास करना नहीं आता उन्हें यदि दूसरों का संग न मिला तो वे कारागार का सा दुःख भोगते हैं । परंतु जो विचारवान् और उद्योगशील हैं वे अकेले में रहते हुए भी बहुजन-समाज की भीड़ में रहने के समान सुखी और आनंदमग्न रहते हैं।

इमरसन का कथन है -"दो मनुष्यों के एकत्र होते ही उनका महत्त्व कम हो जाता है।" इसमें कुछ अर्थ दिखाई नहीं देता। एक जगह उसी ने और भी कहा है-"जहाँ