( २ ) मित्र-लाभ
जिन लोगों ने ग्रंथ-महिमा का बखान किया है उनमें से अधिकतर लोगों ने ग्रंथों की मित्रों से उपमा दी है, क्योंकि ग्रंथों की श्रेष्ठता पूरी तरह से ध्यान में आने के लिये मित्र के समान अन्य उत्तम उपमा उन्हें नहीं सूझी। सुकरात का कहना है कि "सब लोग घोड़े, कुत्ते, संपत्ति, मान, सम्मान इत्यादि की हवस करके उनके पाने के लिये परिश्रम करते हैं, परंतु मुझे किसी मित्र के समागम का लाभ होने से जितना संतोष होगा उतना उन सब चीजों के मिलकर प्राप्त होने पर भी नहीं होगा।" जिनके पास अतुल संपत्ति है उन्हें इसका कुछ न कुछ तो अंदाज होता ही है कि हमारे पास क्या माल मता है, परंतु उनके मित्र चाहे थोड़े ही क्यों न हों पर वे कितने हैं, इसका ज्ञान उन्हें नहीं होता। किसी ने अगर प्रश्न किया और उन्होंने मित्रों की गिनती करने का यत्न भी किया तो भी वे अपने मित्रों के विषय में इतने उदासीन होते हैं कि जिन्हें कभी उन्होंने पहले मित्रों में गिना था उन्हें छोड़ देते हैं। परंतु यदि अपनी मालियत से मित्रों की तुलना की जाय तो क्या वे अधिक कीमती नहीं साबित होंगे? सब चीजों के मूल्य के विषय में बहुधा सबमें मतभेद होता है परंतु मित्रों के मूल्य के विषय में सबका एक ही मत होता है। अपने पास बहुत सा